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________________ Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सूत्रम् ॥४०८॥ 18| छे ते कहे छे:-अथवा 'परं' ते आत्मा छे, तेने मोक्षमा लइ जाय छे, ते 'नाय' (मागधी मूत्र प्रमाणे) छे तेनो अर्थ आ छे. के जे, लोकनो संयोग त्यजे; तेज श्रेष्ठ आत्माना मोक्षनो न्याय छे. सदुपदेशथी मोक्ष मेळवनारो कहेवाय छे. आचा० एम हो; पण, ते उपदेश केवो छे ते कहे छे:॥४०८॥ जं दुक्खं पवेइयं इह माणवाणं, तस्स दुक्खस्स कुसला परिन्नमु दाहरंति, इह कम्म परिन्नाय, सवसो जेअणन्नदंसी, से अणन्नारामे, जे अणण्णारामे, से अणन्नदंसो, जहा पुण्णस्स कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ, जहा तुच्छस्स कत्थइ जहा पुणस्स कत्थइ (सू० १०५) जे दुःख अथवा दुःखनुं कारण अथवा, लोकना ममत्वयी बन्धातुं कर्म तीर्थंकरोए बताव्यु छे के, आ संसारमा जीवाने आवां आवां दुःखो छे, ते दुःखने अथवा तेनां कर्मने धर्मकथानी लब्धि प्राप्त करेला जैन तथा जैनेतर मतना जाण गीतार्थ योग्य विहार करनारा; बोले तेवू पाळनारा, निद्रा जीतेला; इन्द्रियो वश राखनारा, देशकाळ विगेरेनुं स्वरूप जाणनारा; उत्तम गुणोवाळा साधुओ विगेरे आवी परिज्ञा बतावे छे के, दुःखोनुं मूळ कारण तथा, तेनुं रोकावानुं कारण आ प्रमाणे छे. ते जाणीने ज्ञ-परिज्ञावडे प्रत्या ख्यान परिज्ञावडे पापने त्यागे छे. वळी, उपर दुःख थवानो विचार विगेरे मनुष्य तथा बीजा जीवोनुं का ते दुःख जाणवानी P तथा दुःखनु मूळ पाप त्यागवानी वे प्रकारनी परिज्ञा-गीतार्थ साधुओएबतावी. ते परिज्ञा करीने तथा. पापना मूळ आश्रवद्वार जाणीने छोडवा ते कहे छे: AARGARH For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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