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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ आचा० सूत्रम ॥३९४॥ %A3 ॥३९॥ उत्तरः-आ नाशवंत शरीरनी पुष्टि माटे जीवहिंसा विगेरे पापक्रियाओ करे छे, ते क्रियामां हणायला सेंकडो प्राणीओ नाश पामे छे, तेथी मरेला जीवो साथे वेर बन्धाय छे. जे उपर कही गया के, भवभ्रमणमां कपट करवाथी वेर वधे छे, अथवा गुरु कहे| छे:-आ वारंवार हुँ जे उपदेश आउँ छ, नेनुं कारण ए छे के, संसारमा वेर वधे छे, तेथी संयमनीज पुष्टि करवी ते सारं छे.. हवे बीजूं कहे छे. जे देवता नहीं छतां, देवता माफक द्रव्य-जुवानी स्वामीपणुं, सुंदर रुप, विगेरेथी युक्त होयः ते मनुष्य अमर (देवता) माफक आचरे ते अमराय ( देवताइ) पुरुष कहेवाय; ते महाश्रद्धी एटले, जेने भोगमां, अने तेने मेळववाना उपायमा घणी लालसा ( श्रद्धा) होय; ते महाश्रद्धी ( पापारंभी ) छे, तेनुं दृष्टांत कहे छे:-राजगृह-नगरमां मगधसेना नामनी गणिका (वेश्या ) रहेती इती. तेज नगरमा धनशेठ नामनो सार्थवाह हतो. ते कोइ वखते घणुं धन आपीने, ने वेश्यानां घरमां पेठो. तेना | 2 | रुपयौवन-गुणोनो समूह, द्रव्य विगेरेनी लालचथी वेश्याए तेने स्वीकार्यो; पण ते शेठनु आवक, खर्चना हीसावनी जंजाळमां मन रोकायाथी ते वखते, वेश्याने नजरे पण जोइ शक्यो नहों. ( मतलब के, पारनी धुनमां, वेश्या साथे वात पण करी नहीं.) आ वेश्या पोताना रुपयौवन-सुंदरताना अहंकारथी दुःखी थइ. तेने अति दुःखी जोइने जरासंघ राजांए कहेवडाव्यु के तारुं दुःख, कारण शुंछे ? अथवा तुं कोनी साथे रहे छे ! वेश्याए कह्यु के हुँ अमर साथे रहुं छ राजाए पूछयु के केवी रीते ? तेने कडं के मने राखनार शेठ आ प्रमणो पैसादार छे, अने भोगना अभिलापीओ धनमा असक्त बनेला देवता माफक क्रियामां वर्ते छे, खावा पीवामां तथा बीजी क्रियामां देवता माफक विलास भोगवे छे, पण कामनो अभिलापि शरीर अने मननी पीडामा पीडाएलो बहारथी सुखी अने अंदरथी दुःखी भोगोनी इच्छावालो छतां भविष्यना वेपारनी चिंतामां पडेलो मने जोतो पण नथी, तेथी मारां बधांए SHOCKNO-ASC For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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