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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥३८६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुंषक ! तुं हवे शामाटे खेद करे छे ! पाणी गया पछी पाळो बांधवी नकामी छे. (पोते पोतानां हृदयने उपको आपे छे के, तारां हालांसंबंधी जवा केम दीधो ? अने हवे, गया पछी रोये शुं थाय ? पाणी ज्यारे जोइतुं हतुं; त्यारे पाळ बांधीने कां रोकी न लीधुं ?) | तथा जेनां घरमा मोत थाय; ते पोते मर्यादाथी भ्रष्ट थाय छे. एटले शरीर, अने मनमां दुःखोथी पीडाय छे. तथा तेज प्रमाणे घं वाळु सगुं गुजरीगयुं होय; तो केलांक लोको पश्चाताप करे छे के हे बहाला पुत्र ! हे बहाली स्त्री ! तुं मने मुकीने केम जती रही ? इत्यादि अथवा कोइ जग्याए कोप करीने गयेलो होय. अर्थात् नाशी गयेलो होय; अने बनेनो वियोग थाय तो पछीथी, | कहे के:- में तारूं कहें गुस्सामां न मान्युं; तेथी तुं रीसाइने चाल्योगयो. इत्यादि व्यर्थ दुःखो भोगवे छे. आ वां दुःखो शोक विगेरे जे कां छे, ते बधांए जे मनुष्यो विषय-विपना आश्रयमां अंतःकरणने राखे छे, तेमनी दुःखनी अवस्था सूचवे छे. (केडलीक वीओ रडी रडीने आंधळी थाय छे, कोइ छाती कुटीने पोतानां नानां बाळकोने अथवा, पोताना गर्भाशयने अथवा, गर्भमा रहेलां बाळकने दुःख आपे छे, केटलीक अज्ञान स्त्रीओ माथां कुटीने पीडाय छे.) अथवा शोक करे छे. एटले यौवन, धन, मदविगेरेना मोहथी वेरायला मनवाळो विरुद्ध कृत्य करीने ज्यारे बुट्टापो थाय; त्यारे, मोतनो समय आवतां मोढ दूर थतां पस्ताय छे. के, में दुर्भागी पूर्वमां बधा श्रेष्ठ पुरुषोए आचरेलो सुगतिमां जवाना एक हेतुरूप अने दुर्गतिद्वार अटकाववाने बारणांनी पाछली गळसमान धर्म न कर्यो. कां छे के: “भवित्रीं भूतनां परिणतिमनालोच्य नियतां । पुरा यद्यत् किञ्चिद्विहितमशुभं यौवनमदात् ॥ For Private and Personal Use Only सूत्रम् ||३८६ ॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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