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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सुत्रम् ॥३८॥ ३८२॥ कोइ नानुं कार्य गमे तेम साधी लेवाय, पण मोटुं कार्य तेम सिद्ध न थाय. कदाच नानुं खाबोच्यु कुदीने जवाय पण नाव विना समुद्रनी पार जबुं शक्य नथी. जेओ धर्मोपकरणने पण परिग्रह माने छे, तेवा दिगंबर बंधुओ माटे आ संबंधमां मतभेद छ, तेथी अविवक्षित अर्थने तीर्थकरना अभिप्रायने अनुसारे साधवानी इच्छार्थी कहे छे, के “ एसमग्गे " मूळ सूत्रमा बताव्या प्रमाणे आ धर्मोपकरण परिग्रहने माटे नथी, एवु पूर्वे कयुं, ते मार्ग तीर्थंकरोए कह्यो छे, कारण के सर्व पापरूप "हेय" धर्मथी जेओ दर छे. ते आर्यो, तीर्थकरो, छे, पण जेओ धर्मोपकरणने इच्छता नथी. तेवाओए पण कुंडिका, तट्टिका लंबणिका अश्ववाळधि, विगेरे ४ इच्छानुसार उपकरण राखबानो मार्ग पोतानी मेळे शोधी काढ्यो छे, तेम अमारा उपकरणो नथी. (वर्तमानमा श्वेतांबर साधुओ पासे रजोहरण मुहपत्ति विगेरे धर्मोपकरणो छे, त्यारे दिगंबर साधुओ पासे मोरनी पीछीनुं उ- पकरण विगेरे छे, अने टीकाकारना समयमां ते वखते दिगंबर साधुओ जेम करता हशे. तेने उद्देशीने लख्यु छे, खरीरीते ते चर्चा | करवा करतां परमार्थद्रष्टिए जोनारा बन्ने पक्षना साधुओ रागद्वेष रहित बनी जे भविष्यमा अने वर्तमानमां वधारे लाभदायी याय 8 | तेवां धर्मोपकरण वापरी संयमनो निर्वाह करे अने सम्यक्ज्ञान दर्शन चारित्रनी आराधना करे.) अथवा उपरनी चर्चा बौद्ध मतना मौगलि तथा स्वाति पुत्र ए बमेथी बौद्ध मतनुं जे मंतव्य छे. तेने आश्रयी कहे छे. तेज प्रमाणे धर्मोपकरण कोइ खंडन करतो होय. तो तेमने पण ते प्रमाणे समजाववा. कारण के जिनेश्वरे परोपकारना माटे रागद्वेष रहित थइने जे कडं छे. तेना बहु मानना माटे आटलं लखवू पडद्यु. अने For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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