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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिग्रह कहे छेधर्मऊपकरणथी जेटलं वधारे उपकरण लेवू, ते परिग्रह छे. माटे वधारे मळतुं न ले, अथवा संयम उपकरणमां पण मूर्छा क-14] आचाका सूत्रम् 1 रवाथी परिग्रह छे. कडु छे के:॥३८०॥ (तत्वार्थ 'भ. ८.मू.) मूर्छा परिग्रह छे, तेथी वधारे मळतुं छोडीने जोइतां लीधेलां ऊपकरणमां पण मूळ न करे. ॥३८०॥ शंका-जे कंइ धर्मऊपकरण विगेरेनो परिग्रह छे, ते पण चित्तनी मलीनता (राग) शिवाय थतो नथी कयुं छे के-पोताने उपकार करनारमा राग थाय; तो उपघात करनार उपर द्वेष पण थाय; तेथी परिग्रह राखतां रागद्वेष नजीक आवे छे, अने नेनाथी कर्म बंध थाय छे, माटे तमो कहो छो के, धर्मऊपकरण परिग्रह नहीं; ते केवीरीते मानीए ? कयुं छे के: "ममाहमिति चैष यावदभिमानदाहज्वरः, । कृतान्त मुखमेव तावदिति न प्रशान्त्युन्नयः॥ यशः 'खुख' पिपासितैरयमसावनोंत्तरैः, । परैरपसदः कुतोऽपि, कथमप्यपाकृष्यते ॥१॥" आ मारुं एवो ज्यां सुधी अभिमानरूप, दाहज्वर रहेलो छे, त्यांसुधी जमना मुखमां जवानुं छे तेम त्यां सुधी शांति पण | | नथी तेम उन्नति पण नथी. माटे जस अने सुखना बांच्छकोए परिणामे आ अनर्थ छे एम जाणे छे, तेथी ते उत्तम पुरुषोए आ ममताना दुर्गुणने कोइपण रीते गमे त्यांथी खेंची काढवो जोइए. CREASESEXSASEX CAGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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