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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेनावडे दोषो दूर थाय अथवा न थाय; अने जेनावडे पूर्वनां कर्म क्षय याय; ते ते मोक्षनो उपाय, एटले अनुष्ठान साधुए आचा० करवा. जेमके रोगमा चित्त औषध आपवावडे, तथा पथ्य-भोजनवडे रोगनी शांति करे छे, तेज प्रमाणे साधुए उत्सर्ग-अपवादने आचरवां; पण रागद्वेष न करवा अने कर्मों खपावां. सूत्रम् ॥३७६॥ वळी कोइ वखत, तेज औषध उपयोगी होय छे, तेम कोइ वखत, अन्उपयोगी पण छे, तेथी जरुर पडता अपाय तेज प्रमाणे || साधुनां अनुष्ठानमां पण समजवानुं छे. नीचे टोपणमा लख्यु छे केः3" उत्पद्यते हि साऽवस्था, देशकालामयान प्रति । यस्यामकार्य कार्य स्यात कर्मकार्य च वर्जये ॥१॥" F ते अवस्था देशकाळना रोगप्रत्ये छे. के जेमां, अकार्य ते कार्य थाय; अने कार्य ते अकार्य थाय; माटे देश, अने काळ विचारी रोगने वैये औषध आप. "जे जत्तिया उ हेउ भवस्स ते चेव तत्तिया मुक्खे । गणणाइया लोया दुण्हवि पुण्णा भवे तुल्ला ॥३॥18 जेटला हेतुओ भ्रमणना छे, तेटलाज हेतुओ मोक्षना पण छे, अने ते गणत्रीए गणाय तेवा नथी; पण बन्ने बराबर छे. आ बधानो ल परमार्थ ए छे के साधुए रागद्वेष कर्या विना पोतानी शक्तिने अनुसार एकांत न पकडतां ज्ञानदर्शन-चारित्र्यनी आराधना करवी.. ___उपर प्रमाणे "अयंसंधि" त्यांथी लइने "काले अणुट्टाइ" सुधी अगीआर पिंडेषणा बतावी छे. आ प्रमाणे होय तो प्रश्न थाय छे, अप्रतिज्ञावाळो आ सूत्रबडे एम सिद्ध थयुं के कोइए क्यांय पण प्रतिज्ञा न करवी, त्यारे शास्त्रमा आवे छे के जुदा जुदा अभि For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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