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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥३६७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जल्दी नाश पामे तेवी वस्तुओने राखी मुके छे, दहीं भात मेळवी राखे छे, तथा घणो काळ रही शके तेवी वस्तुओनो संचय पण करे छे, ते बाल हरडे, साकर द्राक्ष, बिगेरेने संघरे छे, आ बधुं परिग्रह विगेरे आजीविकाना कारणे छे, अथवा धनधान्य सोनुं विगेरेनो संग्रह करे छे. आ बधुं शा माटे करे छे ते कहे छे: आ लोकमां परमार्थ बुद्धिवाला मुनिओने जमाडवा माटे करे छे, एटले कोइ स्वार्थ माटे, तथा कोइ परमार्थ माटे रात्रिमां, मभातमां के दिवसमा भोजन माटे के, निर्वाह माटे संसारी- पापक्रियाओ करे छे, अने विरूप शस्त्रोवडे बीजां जीवोने पीडा करे छे. आ प्रमाणे लोकनी स्थिति होय; तो, साधुए शुं करवुं ते कहे छे: ease अणगारे आरिए आरियपन्ने आरियदंसी अयंसंधित्ति अदक्खु, से नाईए ना इयावर न समणुजाण, सवामगंधं परिन्नाय निरामगंधो परिवए (सु० ८७) जे साधु सम्यक् रीते निरंतर संयम अनुष्ठानवडे वर्ते छे, ते जुदां जुदां शस्त्रोवडे थती पापक्रियाथी मुक्त थयलो छे, ते मुनिने घर नथी; तेम ममत्त्व पण नथी; तेथी ते अनगार छे, तेम तेने गृहस्थनी माफक दीकरा - दोकरी बहु विगेरेने पण पोषवां नथी. ते अनगार पोते वधां पापकर्मोथी दूर थयेल छे, तेथी ते आर्य छे, तेथी ते चारित्रने पाळवा योग्य छे. वळी जेनी बुद्धि उत्तम छे, ते आर्य प्रज्ञावाळो जाणवो; एटले सूत्र भण्याथी; जेनी बुद्धि परमार्थमां खीलेली छे, तथा न्यायमां मन रहेलुं होवाथी ते न्यायने जुए | तेथी ते आर्यदर्शी छे, एटले ते जुदा “ प्रहेणक ' श्यामा' अशन " ( पूर्वे परोणा विगेरे माटे राते रांध; विगेरे तेनाथी मुक्त ) For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥३६७॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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