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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुत्रम् ॥३४९॥ उपभोगने माटे-धनने इच्छी तेवी तेवी क्रियामां वर्ते छे. एटले अवलगन. (बीजानो आशरो लेवा) विगेरेनी क्रिया करे छे. तेमां द लाभांतराय कर्मना क्षय उपशममा जुदीजुदी जातनुं मळेलं अने वापरतां बचेलं साचववा महान उपकरण भेगां करे छे. ___अने कोइ पापीने तेवा लाभनो उदय न होय, तो धननी इच्छाए ते रंक मनुष्य समुद्र ओळंचे छे, पहाड चढे छे. खाण खोदे ॥३४९॥ द्रा छे, गुफामा पेसे छे, पारानो रस बनावी तेना वडे सुवर्ण सिद्धि (कीमीयो) करवा चाहे छे. राजानो आश्रय ले छे, खेती करावे छे, आ बधी क्रियामां पोताने अने परने दुःख आपवा वडे पोताना सुखना माटे मेळवेलुं धन पोते कष्ट करेलुं होय छतां कोइ वखत तेना पापना उदयथी तेना पीतराइओ तेमां भाग पडावे छे. अथवा दगाथी ले छे. चोरो चोरे छे. राजाओ दंडे छे. अथवा पोते राजना भयथी जंगलमां नासी जाय छे. अथवा तेनुं जुनुं घर पडी जाय छे. अथवा अग्निथी बळतां धन नाश पामे छे. लुटाइ जाय छे; | आवां घणां कारणोथी अर्थ नाश पामवानो छे. एथी उपदेश करे छे के, हे शिष्य ! अर्थनो मेळवनारो बीजानां गळां रेसनारो पाप ४ है करीने आज्ञानी जीव ते धनथी सुख भोगववाने बदले दुःख भोगवतां मुढ बनीने घेलो थाय छे. अने तेथी विवेक नाश थवाथी कार्य-अकार्यने मानतो नथी. तेज तेनी विरूपता छे. कयु छे के "रागद्वेषभिभूतत्वा, कार्याकार्य पराङ्मुखः । एष मूढ इति ज्ञेयो, विपरीतविधायकः ॥१॥ रागद्वेषथी घेरावाथी कार्य अकार्यना विचारमा शून्य एवो विपरीत कार्य करनारो मूढ माणस जाणवो. आ प्रमाणे मूढपणाना अंधकारमा छवायाथी जेने आलोकना मार्गनुं ज्ञान नथी एवा सुखना अर्थिओ छतां दुःखने पामे छे. KARORRECRCOACHCCESS SHASRASHBाकर For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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