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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवश्यक-दश वैकालिक-उत्तराध्ययन तथा आचारांगनी नियुक्ति छे विगेरे जाणआचा० विजयना निक्षेपा नामस्थापना छोडीने द्रव्यमा ज्ञ शरीर विगेरे सिवाय व्यतिरिक्तमां द्रव्यवडे द्रव्यथी अथवा द्रव्यमा विजय ते सूत्रम् छे, के कडवो तीखो कसाएलो विगेरे औषधयो सळेखम विगेरे रोगनो विजय थाय, अथवा राजा के मल्लनो विजय थाय ते द्रव्य ५ ॥२३०॥ विजय छे. क्षेत्र विजय ते छ खंडने भरत विगेरे चक्रवर्तिओ जीते छे. अथवा जे क्षेत्रमा विजय थाय ते क्षेत्र विजय छे काळवडे जे P२३०॥ विजय थाय छे, ते जेमके भरते साठ हजार वर्षे आखो भरतखंड जीत्यो ते काळ विजय छे कारण के तेमां काळ प्रधानपणुं छे. अथवा भृतक (भरवाना ) काममा एणे मास जीत्यो अथवा जे काळमां विजय थयो ते पण काळ विजय छ भाव विजय ते औदयिक विगेरे एक भावनुं बीजा भावमां बदलाववा वढे एटले औपशमिक विगेरेथी थता विजयतुं स्वरूप बतावीने चालु वातमा जे उपयोगी छे ते कहे छे. ___अहीं भाव लोक मूळसूत्रमा लीधेल छे तेथी भाव लोकज कह्यो छे (छंदमा मात्रा वधवाथी भावने बदले भव लीयो छे) 8 (ते प्रमाणे कयु छे. नियुक्ति गाथा १६६ ना छेल्ला बे पदमां का छे के भावमां कषाय लोकनो अधिकार छे विगेरे जाणवू) ते औदयिकभाव कषाय लोकनो औपशमिक विगेरे भाव लोक बडे विजय करवो (कषायो मोहनीय कर्मना उदयथी छे, तेने शांत | २ करवा-क्षय करवा ते कहे छे.) चालु विषयमां तेज जाणवार्नु छे टीकाकार तेज कहे छे. "आठ प्रकारनो लोक अने छ प्रकारनो 8 विजय ए बन्नेनुं स्वरूप पूर्व का. ते बन्नेमां भाव लोक अने भाव विजयथीज अहीआं प्रयोजन छे." आठ प्रकारना कर्म वडे लोक ॐॐॐॐॐॐ For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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