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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ३४५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेओ ध्रुवचारी एटले मोक्षनुं कारण ज्ञान विगेरे छे तेने मेळववाना स्वभाववाला छे तेवा धर्मात्मापुरुषो उपर कहेला असार जीवितक्षेत्र धन स्त्री विगेरेने चहाता नथी. अथवा धुतचारी एटले धुत ते चारित्र तेमां रमणता करनारा छे. अर्थात् चारित्र लइ तेने पूर्ण पाळी मोक्ष मेळवे ते संसारने चहाता नथी भोगना अभावे ज्ञान मेळवीने जन्ममरणना दुःखने जाणीने तेवा पुरुषे संक्रमण ( चारित्र ) मां रमणता करवी एवं शिष्यने गुरु कहे छे के विश्रोतमिका रहित अथवा परिसह उपसर्ग आवतां तारे कंटाळवु नही अथवा हे शिष्य तुं शंका रहीत मन| बालो थइ संयममां रहे एटले शिष्ये तप दमन नियम विगेरे आलोकमां जे कष्ट छे. ते परभवनुं अनंतु सुख आपशे एवं नि:शंकपणे | मानी ने धर्ममां आस्था राखे; अने ते तप नियम विगेरे करे; अने तेथीज पोते तपना प्रभावथी राजा-महाराजाओने पण पूजनायोग्य थाय छे. जे विषय कपायने जीत्या छे, तेवा तपस्वी शांत पुरुषने अहीं जे सुखरूप फळ मळ्युं छे, तथा तेणे वधा जोडकांने दूर करी समभाव मेळव्यो छे, तेवा पुरुषने परलोक कदाच न होय; तोपण नेनुं कंइ बगळतुं नथी. (उपशमभावमां अहींज अनंतु मुख छे, तेने परलोकना सुखनी इच्छा नथी. कछे के: “संदिग्धेऽपि परे लोके, त्याज्यमेवाशुभं बुधः । यदि नास्ति ततः किं स्यादस्ति चेन्नास्तिको हतः॥१॥” परलोक छे के नहि ? एवी एवी शुंकावाळा लोकमां पंडित पुरुषोए पापने छोडबुंज जोइए; जो परलोक नथी; तो तेनुं शुं बगडवानुं छे ? अने परलोक छे तोषण, तेनुं शुं बगडवानुं छे ? एथी परलोक न माननारो नास्तिक हणायो अर्थात् पाप करनारो For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ३४५॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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