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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रमू नारनुं कंइ गणत्रीमा छे ? (नकामुं छे.) आचा०४ आ प्रमाणे मुगांने पण एकांत दुःखनो समूह भोगववानुं छे. कथु छे केः "दुःखकरमकीर्तिकर, मुकत्वं सर्वलोकपरिभृतम् । प्रत्यादेशं मूढाः कमै कृतं किं न पश्यन्ति ? ॥१॥" ॥३४०॥ दुःखने करनार अपजशवाळू सर्वलोकमां निंदा पात्र मुंगापणुं छे, ते पोतानाकर्मोनुं करेलु फळ बीजाने भोगवाताने मूढो केम है। जोता नथी ? (पोते पाप करशे तो, तेवू फळ भोगवईं पडशे.) तेज प्रमाणे काणापणुं पण दुःखरूपे छे. कां छ:___ "काणो निमग्न विषमोन्नतदृष्टिरेकः शक्तोविरागजनने जननातुराणाम् ॥ यो नैव कस्यचिदुपैति मनःप्रियत्वमालेख्यकर्मलिखितोऽपि किमु स्वरूपः? विषमस्थानमा डुबेलो, जेने एकज दृष्टि ( आंख ) छे. जे पोते काणो होवाथी वैराग्य उत्पन्न करवामां शक्तिवान छे, अने जन्मदुःखीओमा ते छे पोते कोइनां पण मनने वहालो लागतो नथी. आलेखवा जोग कर्मथी लखायो छतां; जे बीजाने वहालो न टू लागे; तेनुं स्वरूप गइ गणत्रीनुं छे ? आ प्रमाणे कुंटपणुं एटले, जेना हाथपग बांका होय; अथवा ठींगणापणुं होय; अथवा जेनी पीठ वडनी (सुंधाना ) आकारे । होय; तथा रंगे कळो होय; तथा सबळपणुं होय. आबु स्वाभाविक कदरुपुं शरीर होय अथवा पछवाडे कर्मना वशथी तेवो थाय; CRECR - RA C3% For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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