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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥३३८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मां एकेन्द्रिय बेन्द्रिय त्रेन्द्रिय ए आंख विनाना द्रव्य अने भाव अंधा छे (आपणी माफक तेमने आंखो जोवानी नथी) तथा चौरेन्द्रियवालाथी जोवानी आंखो छतां धर्मना अभावे मिध्यादृष्टिओ भाव अंधा छे. (सारा माठानो तेमने विवेक नथी) कां छे के. "एकंहि चक्षुरमलं सहजो विवेकस्तद्वद्भिरेव सह संवसतिर्द्वितीयम्; एतद्वयं भुवि न यस्य स तत्त्वतोऽन्धस्तस्यापमार्गचलने खलु कोऽपराधः ॥ १ ॥ जेने निर्मळ चक्षु समान स्वभाविक विवेक छे अने तेवा विवेक साथे एमने सोबतरूप वीजुं नेत्र छे, आ बन्ने चक्षु जेमने नथी ते हृदयना आंधळा कुमार्गे जाय तो ते बीचारानो खरेखर भुं अपराध छे : वीतरागनो धर्म पामेला छे तेओ सम्यक् दृष्टि छे, तेमने कोइपण कारणे आंखनुं तेज नाश पाम्युं होय ते द्रव्यअंधा जाणत्रा पण खरा देखता कोने कवा के जे द्रव्यथी पण आंधळा नथी अने भावथी पण आंधळा नथी अर्थात् आंखे जुए छे, अने विवेकथी वर्त्ते छे. थी द्रव्य अने भावी भिन्न एवं बन्ने प्रकारनुं जेने अंधपणुं छे, ते एकान्तथी दुःख आपनारुं छे. कयुं छे के. "जवन्नेव मृतोऽन्धो, यस्मात्सर्वक्रियासु परतन्त्रः । नित्यास्तमितदिवाकर, स्तमोऽन्धकारार्णवनिमग्नः ११ ॥ जीवतांजमुवा जेवो आंखथी आंधळो छे. के ते बीचारो वधी क्रियामां परतंत्र छे. जेने चक्षु नथी तेने हमेशां सूर्य अस्त थलो छे. अने पोते अंधकारना समुद्रमां डुब्यो छे. लोकद्रव्यसन वह्निविदीपिताङ्गमन्धं समीक्ष्य कृपणं परयष्टिनेयम् ॥ For Private and Personal Use Only सूत्रम् ||३३८॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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