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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun yanmandie सूत्रम ॥३३३॥ “एगमेगे खल्ल जीवे अईअद्धाए असई उच्चागोए असई नीआ गोए, कंडगट्टयाए नो हीणे नो अइरिते" आचा० एक एक जीव भूतकाळमां अनेकवार उंच नीच गोत्रमा आव्यो अने उंच नीचना अनुभाग कंडकनी अपेक्षाए हीन के अति1 रिक्त नथी तेज कहे छे. ऊंच गोत्र कंडकवालो एक भविक अथवा अनेक भविकमाथी नीच गोत्रना कंडको ओछां नथी तेम वधारे पण नथी. एबुं समजीने अहंकार के दिनता न करवी. ( अर्थात् समाधि राखवी तेज साधुपणुं छे.) ते बतावे छे. कारण के उंच हनीच स्थानमां कर्मना वशथी उत्पन्न थाय छे. तेज प्रमाणे बळ-रूप-लाभ विगेरे मदना स्थानोर्नु असमंजसपणुं ( अस्थिरता) स मनीने साधुए सुं करवु ते कहे छे. जाति विगेरेनो कोइ पण मद साधु न वांच्छे अथवा तेवी इच्छा पण न करे कारण के उंच नीच २ स्थानमां आ जीव घणीवार उत्पन्न थयो, ए, समजीने कोण गोत्रनो-के-माननो अभीलाषी थाय.! अर्थात् मारुं उंच गोत्र बधा 18 लोकोने माननीय छे. तेवू बीजार्नु नथी. ए, क्यो बुद्धिवान मनुष्य माने.! ___में तथा बीजा जीवोए उंच अने नीच ए बधां स्थानोने अनेकवार पूर्वे अनुभवेलां छे तेज प्रमाणे गोबना निमित्ते मान-वादी * कोण थाय. अर्थात् जे संसारना स्वरूपने सारी रीते जाणे छे, ते अहंकारी न थाय वली अनेकवार ते स्थानो पूर्वे अनुभवे छते हमणां एकाद उंच गोत्र विगेरे अस्थिर स्थानकमां आवतां राग विगेरेना विरहथी गीतार्थ थएल कोण ममत्व करे ! एनो भावार्थ आ छे. के कर्मनुं परिणाम जेणे जाण्यु छे तेवो मुनि आ सेवाने धारण करे. ग्रद्धपणाने क्यारे योजे के जो पूर्वे तेणे तेवून मेळव्यं होय तो. पण खरीरीते तेणे घणी वखत उंचगोत्र विगेरे मेळव्युं छे. तो ते ऊंचगोत्रना लाभथी के अलाभथी ২২-ৰেফেকেৰে। For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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