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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ३२५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छे प्रति उपेक्षणा एटले गुण दोषनो विचार करी गुणोने ग्रहण करवा अने लोभ छोडवो अथवा लोभनां कडवां फळने विचारी तेना अभावमा जे गुण तेने चाहीने ते लोभने जे त्यजे तेनेज अणगार कहेवो. अने जे अज्ञानवडे मनमां मुझाएलो छे ते अप्रशस्त मूळ गुण स्थानमा रही विषय कषाय विगेरेमा फसेलो होय ते दुःख पाये छे ए वधुं फरीथी सारो साधु याद करे के संसारी जीव अलोभने लोभ वडे निंदे अने विशयसुखमळतां तेने भोगवे अने लोभने छोडी साधु थइ पाछो लोभमां गृद्ध बनी बहोळा कर्मवालो कइ पण जाणे नहीं तथा जुवे नहीं ( कामान्ध जन्मथी आंधळा करतां पण वधारे आंधळो छे ) अने हृदयमां चक्षु मीचावाथी विवेक रहित बनी भोगोने वांच्छे छे. अने पहेला उद्देशामां जे बतान्युं ते अहि जाणं. प्रमाणे उत्तम साधु विचारे छे के लोभी रात दिवस दुख पामतो अकाळमां उठतो भोग बांच्छुक अर्थ लोभी लुंटारो विचार वगरनो वेला जेवो बने छे अने पृथ्वी विगेरे जोवोने उपघात करी शस्त्रो वारंवार चलावे छे. ली ते पोतानी शरीर शक्ति वधारवा जुदा जुदा उपायो बडे आलोक परलोकना सुखने नाश करनारी क्रिया करे छे ते नीचे मुजब छे. मांसथी मांस वधे तेथी पंचेन्द्रिय जीवोने हणे छे तथा चोरी विगेरे करे छे सूत्रमां बताव्युं छे एज प्रमाणे संसारी जीव सगांने पुष्ट करवा मित्रने पुष्ट करवा मथे छे एटले ते शक्तिवालां हशे तो हुं तेमनी मददथी आपदामांथी बचीश तथा प्रेत्य बळ वधारवा वस्त (बेदुं) विगेरेने ते हणे छे, तथा देववळ वधारवा (प्रसन्न करवा) रांधवा रंधावानी क्रिया (नैवेद्य करे छे) अथवा राजानुं वळ वधारवा राजानुं इच्छित करे छे, अथवा अतिथीनुं बळ वधारवा चाहे छे, ते अतिथी निःस्पृह होय छे. कं छे के; For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ३२५॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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