SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ८९ ॥ www.kobatirth.org उपयोगमा समावेश थाय तेत्रा मति श्रुत अज्ञानयुक्त पृथिवीकायिक जीव जाणवा तथा स्पर्शन इन्द्रिय वडे अचक्षु दर्शन पामेला जाणवा तथा ज्ञान आवरणीयादि आठ प्रकारना कर्मना उदयने भजनारा तथा बांधनारा जाणवा तथा लेश्या ते अध्यवसाय | विशेषरूप छे तेषां कृष्ण, नील कापोत, अने तैजस. ए चार लेश्याने ते ओ मेळवे छे. तथा दशविध संज्ञा पामेला छे. ते पूर्वे आहार विगेरे कही गया छीए. तथा सूक्ष्म उच्छास निश्वास सहित छे, धुं छे, के पुढचिकाइयाणं भंते! जीवा आणवन्ति वा पाणवंति वा ऊससन्ति वा नीससंति वा? गोयमा ! अविरहियं सतयं चेत्र आणवन्ति वा पाणवन्ति वा ऊससंति वा नीससन्ति वा । गौतम इन्द्रभूति महाराज पूछे छे. हे भगवन्! पृथिवीकायिक जीवो श्वास विगेरे ले छे? त्यारे जिनेश्वर भगवान कहे छे. हे गौतम! जरा पण विसामो लीधा विना पृथिवीकाय उसासो निसासो लीधा करे छे. तथा कषायो क्रोधादि पण सूक्ष्म होय छे. ए ममाणे जीव लक्षण ते उपयोग विगेरेथी लइने कषाय सुधीना पृथिवीकायना जीवोमां होय छे. अने ते जीव लक्षण समूदवाळी होवाथी मनुष्यनी माफक पृथिवी पण सचित्त जाणवी. शंका--आप कहे ते असिद्धवडे असिद्धज साधवा जेतुं छे. केमके उपयोग विगेरे क्षण पृथिवीrani मग देखातां नथी! उत्तर तमारूं कहे सत्य छे के उपयोग विगेरे लक्षणो पृथिवीकायम मगट देखातां नथी. कारण के ते लक्षणो तेमां अमगटपणे छे. जेम कोइ माणस घणाज प्रमाणमां नसो चढे तेषु मदिरा पान करे अने तेनुं चित व्याकुळ पड़ जाय तेथी तेने प्रगट भान होतुं नयी पण सूक्ष्म होय छे. तेटला गावे कंइ लेने अचित न गणी शकाव For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥। ८९ ।।
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy