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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७३॥ www.kobatirth.org विशाळ संसारमां विघ्नरूप अधार्मिकत्व दुष्कर्म प्राय होवाथी जीवो धर्म करी शकता नधी ॥ ९ ॥ आर्य देश, उत्तमकुळ, रुप, संपदा आयुः, अने लांबा काळ सुधी आरोग्यता तथा यति (साधु) संसर्ग तथा तेमना वचन उपर श्रद्धा तथा धर्मनुं सांभळ अने | तेनी बुद्धिमां विचार करवानी शक्ति आववी ए वधुं दुर्लभ छे ॥ १० ॥ ते मळे ते बघु थाय छतां पण चीरुणा मोहनीय कर्म थी कुपथमा पढेला जीवाने आ जन्तमां जीनेश्वरे कईलो सन्मार्ग पामको बहुज मुश्केल छे. ॥। ११ ।। अथवा जे पुरुष बधी दिशा विदिशामां अनुसंचरे छे, तथा अनेक रुपवाळी योनियोगां दांडे छे. अने विरुप रुपत्राळा स्पर्शोने अनुभवे छे. ते मनुष्य कर्म बंधननी क्रियाथी अजाण्यो होवाथी, मन, वचन, अने कायावडे कर्म करे छे. पोते जाणतो नथी के में पूर्वे करेला छे. करू छु अने जे करीश ते बधां कर्मो जीवोने दुःख देवा रूप होवाथी ते सावध छे अने ते बंधननां हेतु छे. अने तेथी अज्ञान दशामांज ते जीवांने पीडा करनारी कृत्योमां तैयार थाय छे अने तेनाथी आठ प्रकारनां कर्म बंध थाय छे। अने तेना उदयथी अनेक रूपवाळी योनिमां अनुक्रमे अवतरे छे अने विरुप रुपवाळा स्पर्शनो अनुभव करे छे. ।। ९ ।। जो आज प्रमाणे छे. तो शुं करं ते बतावे छे. . तत्थ खलु भगवता परिष्णा पवेइआ (सू. १०) उपर कहेला व्यापारने में कर्यो करू छु अने करीश, एवी आत्मानी जे परिणति छे, ते स्वभावपणे मन, वचन, अने कायाना व्यापार रुपयां परिज्ञान ते परिशा छे. अने ते प्रकर्षथी प्रशस्त छे. एम श्री महावीर मनुए बतायुं छे. एम सुधर्मा स्वामी जंबूस्वामीने कहे छे ते परिशा ये प्रकारनी छे. ज्ञपरिज्ञा अने मत्याख्यान परिज्ञा तेमां भगवान कहे छे के सावाच व्यापारथी बंध थाय छे. एम For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ७३ ॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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