SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नियमथी अनन्ता (तमाम) जाणे छे. तथा जातिस्मरणवाको नियमयी संख्याता भवने गाणे छ. माली I IVE आचा०13॥ ६४-६५॥ सूत्रम टीका नहिं छत्ता छासठमी गाथानो अर्थ थोडो बतावीए छीए. 'परवइ वागरणं' ते जिनव्याकरण जाणवु जिनेश्वरथी पर बीजो ॥ ६० ॥ नथी, तथा बीजाओनी पासे सांभळीने, तथा जिनेश्वरथी सर्व पर अन्य छे. नीचेनी कथाभोथी जणाशे के कोइ भन्यात्माने धर्म- ॥६ ॥ रुचीनी माफक स्वयं जातिस्मरण प्रगट थाय छे. कोइने जिनेश्वर पासेधी सांभळीने थाय छे जेम महावीरस्वामी पासे गौतमस्त्रामीने यु तथा अन्य पासे एटले मल्लिनाथ भगवानना मित्रोने मल्लिकुमारीए युवावस्थामां बोध करता (मित्रोने) जातिस्मरण ज्ञान धयु, Pए नीचेनी कथाथी समजाशे. अहिं सहसम्मति विगेरे परिज्ञानमा सुखेथी समजाय माटे प्रण दृष्टांतो बतावे . वसंतपुर नगरमां जितशत्रु नामे राजा छे. तेनी धारणी नामनी महादेवी (पट्टराणी) छे. तेने धर्मरुपी नापनो पुत्र थयो, से राजा । एक दिवस तापसपणे व्रत लेवानी इच्छावाको धर्मरुचीने राज्य सौंपवानी तैयारी करवा लाग्यो. से जोइने धर्मरुनिए पोतानी हाजाने पूछयु के मारो पिता राज्य शा माटे तजे छ? माए का बेटा ! आ नारकी विगेरेना सकल दुःखना मेतुभूत तथा स्वर्ग अने मोक्षमार्गमां विघ्न करनार अर्गला (आंगळी) समान तथा अवश्य दुःख देनारी लक्ष्मीबहे शुं प्रयोजन के? परमार्थथी आ लोकमा पण अभिमान मात्र फळ देवाचाळी छे. तेथी तेने छोडीनेज सकळ मुखनु साधन जे धर्म तेज करवाने तारो पिता उद्यम करे के. धर्मरुचि ते सांभळी नोल्यो के जो लक्ष्मी आवीज छे तो मारा पिताने अनिष्ठ छुके जे आवी सकल दोपने धारनारी लक्ष्मी मने For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy