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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ५७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ५७ ॥ ते जाणे ते हूं, आमां 'से' शब्द मागधी शैली प्रमाणे प्रथमाना एक वचनमां छे. 'श' शब्दवडे जाणवुं के जे पूर्वे फहेलो जानारी एटले जेने वधारे क्षय उपशम होय ते विचारे छे के पूर्व कहेली दिशा भने विदिशामांथी मारु आगमन धयुं छे. तथा हु पूर्व जन्ममां कोण हतो देवता, नारकीय, के तिर्यच, अथवा मनुष्य हतो अथवा स्त्री, पुरुष के नपुंसक हतो? अथवा भविष्यमां हु आ मनुष्य जन्मथी मरीने देवादि शरीरमां जइश एवं विचारे अने समजे आधी एम समज के कोइपण अनादि संसारमां हूँ भ्रमण करतो प्राणी दिशामांधी आगमनने न जाणे (दरेक न जाणे) पण जे विशिष्ट संज्ञावाळो होय ते जाणे ते मति ज्ञानवाळो एटले जेनी बुद्धि खीखेली होय तेनो भावार्थ ए छे के आत्मानी साथे जेनी सुबुद्धि होय ते सुबुद्धिवडे कोइक भव्यात्मा जाणे छे सूत्रमां ' सह सम्मइआए ' चि शब्दधी एम सुचव्युं के मतिनुं आत्मस्वभावपणुं हमेशां हे पण वैशेषिक मतवाळा मतिने आत्माथी । जुदी माने छे अने आत्माथी समवाय वृत्तिए जोडायली छे. तेयुं नहि जो सम्म ए'ति एटले पोतानी बुद्धिवडे तेपां भिन्न पण अश्वादिक पोतानां माने छे तेथी मति पण जुदी थइ जाप तेवी शंका न थाय माटे स शब्द विशेषणमां छे. अने सह (सार्थ) श ब्द बधे लागु न पडे अने आत्मानी साथे हंमेशां रह्या छतां मवळज्ञान आवरणवडे ढंकावाथी सदा विशिष्ट वोध नथी. हवे ते म ति सन्मति अथवा स्वमति, ते अवधि, मनःपर्याय, अने केवळज्ञान, जातिस्मरण, ए चार भेदे जाणवी. तेमां अवधि, मनःपर्याय, अने केवळ ज्ञान स्वरुप, बीजा स्थानमां विस्तारथी का छे. अने जातिस्मरण ज्ञान ते मतिज्ञाननो विशेष बोधज छे, तेथी आ . प्रमाणे आत्मानी चार प्रकारनी मति बडे कोक विशिष्ट दिशानी गति आगति जाणे छे. अने कोक पर (श्रेष्ठ) ते तीर्थकृत् सज्ञ छे. परमार्थथी तेनेज परशब्दनु बाध्यपणुं होवाथी परपणुं होवाथी परपशुं आपे छे तेनावडे व्याकरण ते उपदेश ते उपदेशथी For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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