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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हितो, अने त्यांथी आ मनुष्य जन्मा आलो हु'. अने परण पछी फरी घखत हुंक्यां पेदा थइश ए प्रमाणे कोइ जातनु शान 5 आचा० नथी होतुं. जो के अहिं वधी जगोपर भाव दिशावडे अधिकार अने प्रज्ञापक दिशाबडे छे. तोपण पूर्व मुबमा साक्षात् भन्मापक दिशा । सूत्रम् सीधी छे भने अहि तो भाव दिशा के एम जाणवं. वादीनी शंका, अहि संसारीओने दिशा विदिशामांधी आवचा विगेरेनी ॥४५॥ 18 विशिष्ट संज्ञा निषेध याय पण सामान्य संज्ञानो नहिं. आ पात संज्ञी, जे धर्मी आत्मा छे तेने सिद्ध कर्या पछी थाय छे. कछे के धर्मी सिद्ध थाय तो धर्मनु चितवन थाय छे. हवे तमारो मानेलो आत्मा प्रत्यक्ष आदि प्रमाण गोचरथी, दर होवाथी तेनी सिद्धि | HIनहि थाप भने ते प्रमाणे विचारीए तो आत्मा प्रत्यक्षयी अर्थ (आत्मा) साक्षात्कारीथी विषयी थतो नथी (नजरो नजर देखातो| नथी) कारण के ते इंद्रियोना ज्ञानथी दूर छे. अने अतीन्द्रियपणुं स्वभावथी भकृष्ट पणे 2. अने अतीन्द्रियपणाथीन तेनु अव्यः | भिचारी कार्य विगेरेनु चिन्ह तेनो संवैध ग्रहण करवानो असंभव छे. (अतीन्द्रिय ते सर्वक्ष हे. अने ते जाणे, पण बीजां सामान्य माणस न जाणे तो केवी रीते पाने) जेवी रीते प्रत्यक्ष सिद्ध धतो नथी, तेवी रीते अनुमान पणे पण सिद्ध धतो नथी, कारण के आत्माना अमत्यक्षपणाथी सेनी सामान्य ग्रहण शक्तिनी उत्पत्ति न थाय तथा त्या बुद्धि पूर्वक अनुमान पण केवी रीते थाय, जेम आ वे प्रमाण लागु न पढे तेम आगम प्रमाणनी विविक्षाना प्रतिपाद्यमानमा अनुमानना अंतनो भाव के अने बीजी जगोए बाह्य ट्र अर्थमां संबंधनो अभाव होवाथी अप्रमाण छे. अथवा प्रमाण पण मानीए. तो परस्पर विरोधी होवाथी आगम प्रमाण नकामु छ H(जुदा जुदा भागमो एटछे जैन अने जैनेतरमा एकज आगम नथी तेथी बधा पमाण भूत जैनागमने न माने) अने तेना विना For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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