SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ४३ ॥ www.kobatirth.org मापकी अपेक्षा अढार मेदे दिशा छे। अने अहिं भावदिशा पण तेज प्रमाणे प्रत्येक संभवे छे. एधी एकेक मज्ञापक दिशाने भावदिशाना अढार अंक बडे गुणवा. तेनी संख्या १८x१८-३२४ एम उपलक्षणथी तापदिशा विगेरेमां पण यथा संभव योजना करवी. क्षेत्र दिशामां पण चार महादिशाओनो संभव छे पण विदिशा विगेरेना संभव नथी कारणके तेओम फक्त एक म देशपणुं होवाथी तथा चार प्रदेशपशुं होवाथी संभव नथी. ॥ ६१-६२ ।। आदिशा संयोगनां समूह ते पूर्वे 'अण्ण यरिओ दिसाओ आगओ अहमंसि, ' कहेल वचनथी लीधो छे. सूत्रो अवयवार्थ आ प्रमाणे छे, अहिं दिशा शब्दथी प्रज्ञापकदिशा पूर्वादि चार अने उर्ध्व अधो मळीने छ ग्रहण करी छे अने भाव दिशा तो अहारे पण ले, अनुदिक ग्रहण करवायी मज्ञापकनी बार विदिशा जाणवी. ( उपरना चार खुणा तथा नीचली पूर्वे कहेली चार दिशा तथा खुगा मळीने वार जाणवा) तेमां असंज्ञीओने आवो बोध नथी तथा संज्ञीओने पण केटलाकने होय अने केटलाकने न होय, के, हुं अमुक दिशामांथी आव्यो छु (जन्म लीधो छे.) एव मेगेसि गोणायं भवइत्ति ' ए प्रमाणे प्रतिविशिष्ठ दिशा अने विदिशामांथी मारु आव थयुं एवं केटलाक जीवो नथी जाणता. आ कहेवानुं तात्पर्य वाक्य छे, ( उबवाइसूत्रनी दीकाने आधारे आ भीजा सूत्रनो अवतरण भाग छे. अने चुर्णिकाना अभिप्राय प्रमाणे ' भविस्सामि' शब्द वडे पर्यंत उपसंहार वाक्य छे, भवति साथे जहा एटलुं अधिक वाक्य छे. हवे निर्मुक्तिकार तेज कहे छे केसिंचि नाणसण्णा अस्थि केसिंचि नत्थि जीवाणं । कोऽहं परंमि लोए आसी कयरा दिसाओ वा ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ४३ ॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy