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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३२॥ हे आयुष्मन् ! (जाति विगेरे उत्तम गुण होय छतां पण शिष्यनु आउखु जो लांबु होय तो पोते सारी रीते भणीने वीजाने आचारभणावी शके माटे आ शिष्यने आशिर्वादनु वचन छे) में सांभळयुछे पण परंपराए नहि. सूत्रम् अहिआं आचार सूत्र कहेवानी इच्छाथी तेनो अर्थ तीर्थकरे कह्यो होवाथी 'तेन' शब्दवडे आयुष्मन् विशेषण तीर्थकरने पण लागु पडे, अथवा 'भामृशता' शब्दवढे सुधर्मासामी पोते पण समजाय, एटले भगवानना चरणने स्पर्श करता एका में सांभळयु ॥३२॥ | तेथी गुरुनो विनय बताच्यो तथा 'आवसता' शब्दवडे गुरु पासे रही में सांभळयं तेम तमारे पण गुरुकुल वास सेवबो एम सूचव्यु.स ४ (आयुष्मन् शब्दना जुदा जुदा त्रण अर्थ बताव्या. पाचला चे अर्थ 'आमुसंतेण' तथा 'आवसंतेण' ए वे पाठान्तर छे तेने आ-8 श्रयी जाणवा भगवत् शब्द ऐश्वर्य आदि छ उत्तम गुणो युक्त भगवान छे एम सचव्यु. अने का विधिए कह्यं ते 'तेन' शब्द बडे। जाणवू. आख्यात शब्द वडे कृतक्त्व (कर्ता पणुं) दुर करवा वडे आगमर्नु अर्थथी नित्यपणुं कछु'. 'इह' शब्द बडे आ क्षेत्र, ४. प्रवचन, आचारमा, अथवा शव परिज्ञामां संबंध के अथवा आ संसारमा केटला जीवो जे ज्ञान आवरणीय आदि आठ कर्म युक्त छ तेमने संज्ञा (समृति) यती नथी. आ पदार्थ बताच्यो छे हवे पदविग्रहमा समास न होवाथी बतायो नथी. हवे चालना एटले शंका थाय ते कहे हे. 18 अकार विगेरे निषेध करनारा लघु शम्दनो संभव अहिं थाय छतां शा माटे नो शब्द निषेध माटे वापर्यो ! इवे प्रति अवस्था 6(समाधान ) करे छे. तमारु कहे ठीक के. पण अहि नो शब्द वापरवामां प्रेक्षापूर्वकारिता ( विशेष हेतु ) छे ते बतावे . जो For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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