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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ २५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थापना ब्रह्मपुरी पो. वे द्रव्य ब्रह्म बतावे छे. दव्वं सरीरभविओ अन्नाणी वस्थिसंजमो चेव । भावे उ वत्थिसंजम णायवो संजमो चेव ॥ २८ ॥ ज्ञ शरीर, भव्यशरीर, शिवाय शाक्य, परिव्राजक विगेरे अन्य दर्शनीय साधुओना शरीर मात्र एटले स्त्री संग त्याग पण तत्व | बोध विनानुं ब्रह्मचर्य व्रत तथा विधवा अथवा परदेश गयेला पतित्राळी, अथवा पतिए दूर करेली जे स्त्री इच्छा बिना पण कूळनी मर्यादा ब्रह्मचर्य पाळे छतां कुशल सेवनारने सहायता करे तथा कुशील बीजा पांसे करावे ते द्रव्य ब्रह्म जाणवुं भाव ब्रह्म ते साधुओ सर्वथा अदार भेदे जे संयम पाळे अने इन्द्रिय निरोध करे ते. आ सत्तर भेदे जे संगम छे तेनाथी घणे अंशे मळतुं छे. उपर जे अढार भेद कला ते आ ममाणे. मन, वचन, कायावडे कर अने करावयुं अने अनुमोदनुं ए देवता संबंधी वैक्रिय शरीरथी अने मनुष्य तिर्थचीनुं औदारिक शरीर से संबंधी एटले श्रण करण त्रण योग अने बे शरीर ए त्रणेनो गुणाकार करतां अहार भेद | थाय ते देवीनी साथै काम रति सुख न भोगवे तेम मनुष्य तथा तीर्थच स्त्री साथै पण न भोंगवे ते त्रण करण सहित पाळे ते | ब्रह्मचर्य अढार भेदे भाव ब्रह्म जाण हवे चरणना निक्षेपा कहे छे. चरणंमि होइ छक्कं गइमाहारो गुणो व चरणं च । खित्तंमि जंमि खित्ते काले कालो जहिं जाओ (जो उ ॥२९॥ ते चरणना नाम विगेरे छ निक्षेपा छे. ते सुगम नाम स्थापना छोडीने ज्ञ शरीर, भव्य शरीर विना द्रव्य निक्षेपे चरण त्रण प्रकारे छे, गति, भक्षण अने गुण, तेमां गति चरण ते गमन जाणवु आहार घरण के लाइ विगेरे खावानु छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ २५ ॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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