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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie सूत्रम् ॥२१४॥ ॥२१ ॥ मानीने दम्य पर्यायथी उत्पत्र भयेलं जे कइ छ, ते बीजीरीते नथी तेर्बु पाने. अही सामान्य तथा विशेषने जाणवाथी संपूर्ण जाणयो, तथा योग्य वस्तु स्वरूपनो जेणे निश्चय कयों के ते सर्व सम्यक् कारे प्रज्ञान पामेल) आत्मा कहेचो; अथवाः शुभ अशुभनो बधो समूह तेना संपूर्ण ज्ञानधी चारे गति तेना तथा मोशमुखना सपना ज्ञानथी अस्थिर संसार मुखमां असंतुष्ट पनी मोक्ष अनुष्ठानने करता सर्व अनुहन बोध ( पक्षान ) वाळो आन्या जाणतो; तेथी आ मकारना भात्मानन करवा योग्य तथा परलोकमा निंदनीयपणाथी हिंसाने अकार्य जाणीने ते न करना पत्न करे हवे ते जीव मध ?शा माटे अकार्य ? शा माटे | तेनो यत्न न करचोरी से कहे नीचे पाडे ते पाप, भने कराय ने कर्म, ने पापकर्म अदार प्रकारनुं . ते माणतिपातथी पिध्या स्वदर्शन शल्य चपी के ते बतावे . | जीवसिा, जुई, चोरी, कुशील, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, क्लेश, अभ्याख्यान, (खोदूं तोहमत ) चुगली परनिंदा खेद कपट करीने जुहूं बोलवू. तया मिध्यात्व शल्य, ए अहार प्रकारनां पाप पोते न करे, म करावे, अने न अनुमोदे, एटले ते अढार प्रकारनां पाप संपूर्ण जाणीने बुद्धिमान पुरुष मर्यादामा रहीमे छजीकनिकायनां शाखो जेस, परकाय भेदरूप हे तेने पोते न आरंभे, म आरंभ करावे, न आरंभताने अनुमोदे, भा प्रमाणे जेणे सारी रीते रछ जीवनिकायमा शसना समारंभोने परीक्षा करीने जाण्या छे तथा से विपणनां पाप क्यों पण नाण्यां ओ. ने सपरिवाए जाणीने पत्याख्यान परिपाए त्याग करे छे ते मुनी वधा पापोथी रडिग छ, तथा वा पूर्व ययेल वीतराग एटले राग द्वेपथी बीलकुल रहित एवा पुरुपनी माफक जाणवो, ( अहिं.' इति ' शब्द अध्ययननी समाप्ति माटे के ) पछी सुधर्मास्वामी कहे से, के पोतानी बुदिथी नही, पण HW For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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