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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२०२॥ www.kobatirth.org कायनो उपभोग छे. हवे शखद्वार कहे छे. तेमां शस्त्र द्रव्य अने भाव एम मे भेदधी छे तेमां शख कहे छे विअणे अ ताल घंटे सुरपसियपत्त चेलकण्णे य । अभिधारणाय बाहिं गन्धग्गी वासस्थाई ॥ १७० ॥ पंखो, ताडनां पांदडा, सूप चामर पदों, बनो छेटो विगेरे बापुन द्रव्य शस्त्र के अने पवन भजवाने मार्गे रुवांना छीद्रोमांथी जे बहार आवे छे ते परसेवो ते शस्त्र छे. ते अभिधारणान के तथा गंधो ते चंदनवाको विगेरे तथा अमिनी जवाळा (भडका अने ताप ) (अंगारा ) तथा ठंडो तथा उनो बगेरे उलटो वायु से प्रतिपक्ष वायु ग्रहण करवाथी स्वकाय विगेरे शस्त्रो सूचन थयुं एटले पंखो विगेरे परकायशस्त्र, तथा उल्टो वायु स्वकाय शस्त्र के ए प्रमाणे भावशस्त्र पण अबळे मार्गे दोरेला मन, वाणी, शरीर विगेरेधी वायुने पीडारूप जाण, हवे वधी नियुक्तिमा अर्थने उपसंहार करवा कहे छे सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। एवं वा उसे निज्जुसी कित्तिया एसा ॥ १७१ ॥ शेष एट का ते शिवायनां वाकीनां द्वार जेटलां पृथिवीकायना उद्देशामां कहां नेटलां नहीं जाणी लेवां. ए प्रमाणे जे पूर्वे निर्युक्ति कही, ते वायुकायना उद्देशामां पण कहेली जाणत्री. नाम निष्पन्न निक्षपो पूरो थयो हवे सूत्रानुगममां अस्खलितादि गुणयुक्त सूत्र बोलते आ छे, 'पहू एजस्स दुर्गुछणाए' चि' आनो उपरनी साथै एवो संबंध छे. अहिं पूर्वना उद्देशाना बेल्ला सूत्रांसकायनुं पूरेपुरुं ज्ञान, अने तेना आरंभनो त्याग ते मुनिपणामां कारण छे, एम कयं वायुकायना त्रिषयमा पण सुनियणामां | कारण छे, तेम कद्देवाय छे तेनो परस्पर सूत्र संबंध आ छे'इहमेगेसि णो णायं भवई' सि, अहिं केटलाकने आ वासनी खबर नथी. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ २०२॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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