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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie सूत्रम् ॥१९५॥ द प्रसकायो दुःख पामे थे पांथी दुःख पामे छे? उत्तर तेना आरंभ करनारा तेनो नाश करे छे. [बलवान निवळने मारे छे] आचा० प-भु करवा तेने मारे छे ?. उत्तर-तेओ तेनो आरंभ करे छे ते नीचे प्रमाणे कहे छे. तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरा परितावंति, संति पाणा पुढो सिया (सू. ५१) निचे कडेवावा ते ते कारण उत्पन्न यये अर्चा, अजोन, शोणित, विगेरे जुदा जुदां प्रयोजन उत्पन्न थयेथी तेओ हणे छे. ६ एम शिष्यने कहे छे, के तुं जो (शुं जोवान ) ते कहे छे मांसभक्षण, विगेरेमा लोलुप थयेला मनना ठेकाणा विनना चारे बाजुधी जुदी जुदी वेदना करीने अथवा पाणीने भावावडे तेनो आरंभ करनारा जीवो, सनीवोने पीडे छे, गमे तेची रीते आरंभथी | मणीओने दुःख पाय छे ते यतावचा कहे छे सतीत्यादि' एवा जुदा जुदा प्रकारना एक बे, त्रण, चार, पांच इन्द्रियवाळा पृथिवीने | आश्रयी रहेला घणा पाणीभोछे. एम जाणीने पाप विनानुं अनुष्ठान करनारा थq, एवो अभिप्राय छे एवं नथी करता तेओ बोले | छे कइ, अने करे हे कइ, (बोले छे तेवू करता नथी ) ते बतावे छे-- लजमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहि सस्थेहिं तसकायसमारंभेण तसकायसत्थं समारभमाणा अपणे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति, तत्थ खलु भगवया परिणा पवेइया, इमस्स चेव जीवियस्त परिवंदणमाणणपूयणाए जाईमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेडं i-khara For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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