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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandie IM॥१८१॥ अचेतनौने आ आहारपणुं वाय देखेलु नथी, तेथी वनस्पतिमा सचेतनपणुं छे. तथा मनुष्य शरीर अनिस्य छे, हमेश रहेनारं आचा० नथी, ते प्रमाणे आ वनस्पति शरीर पण नियत आयुष्यवाछु अनित्य छे, ते वनस्पतिर्नु उत्कृष्ट आयु दशहजारवर्षनुं छे, तथा आ | मनुष्य शरीर क्षणे क्षणे 'आर्वीची' मरण बढे अशाश्वत छे, तेम वनस्पतिनुं शरीर पण छे, तथा मनुष्यनुं शरीर जेम इष्ट अनिष्ट | ॥१८॥ आहार विगेरेनी प्राप्तिथी जाडु पातळु थाय छे, तेम वनस्पति पण छे, तथा आमनुष्य शरीर देवा तेवा रोगोना संपर्कथी विविध परिणामवाळूछे जेम पांडत्व उदर वृद्धि, (जळंदर) सोजापj, पातळापणु, तथा आंगळी नाक सडे तेवा तथा बालादि रुपवाळु छे ते प्रमाणे रसायन स्नेह वितरेना उपयोगथी विशिष्ट कान्ति बळ उपचम विगेरे रुपवाळा एटले विशेष परिणामवाळा पाप छे ते ध-18 मेवाळु बनस्पति शरीर पण छे. तेवा रोगो उत्पन्न वाथी, पुष्प, फळ छाल विगेरे सुकाइ जाय छे तथा विशिष्ट दौहद (दोहला) पुरवाथी, फुल फळ, विगेरेना उपचयथी विशेष परिणाम धर्मवाळ हे. आ प्रमणे बनावेला धर्म समूहना सद्भावथी तरुभी सचेतन | 1४. एम जाणवू. एशिष्यने गुरु कहे छे. ए प्रमाणे वनस्पति चैतन्यने बतादीने तेना आरंभमां बंध छे तेनो स्पागरूप विरति से-18 ववाथी मुनीपणुं प्रतिपादन करीने तेनो उपसंहार फरवा कहे छे. एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्छेते आरंभा अपरिपणाता भवंति, एरथ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति, तं परिणाय मेहावी व सयं वणस्सइसत्थं समारंभेजाणेवण्णेहिं वणस्सइसत्थं समारंभावेजा णेवणे वणस्सइसत्धं समारंभंते समणुजाणेजा, जस्सेते वणस्सतिसस्थस For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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