SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिज्ञा करी ते प्रमाणे बतावे छे, अहिंआं उपदेशने योग्य मूत्रनो आरंभ छे, अने तेने कहेवा योग्य पुरुष होय. तेना पासे आचा हे बापणाथी ते शरीर प्रत्यक्ष आसन्न वाची 'इदम्' (गुजरातिमा 'आ') शब्दवडे साधु विचार करे. आपणं आ मनुष्य शरीर रोर। सूत्रम् जनन (जन्म) ना धर्मवालु छे. अने वनस्पनिनुं शरीर पण ते स्वभाववाढं छे. अहिंआ 'इति' शब्द सहित 'अपि' शब्द छ, ॥१७९॥ ते दरेक जग्याए 'यथा' शब्दना अर्थमां छे, अने वीनो 'अपि' शब्द समुच्चयना अर्थमा छे तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. जेम ॥१७९॥ मनुष्य शरीर वाळ, कुमार, जुबान, तथा पुट्ठापणाना विशेष परिणामवाळ छे, तथा चेतनाबार्छ एटले जीवथी सदा अधिष्ठित छे, कारण के तेनी चेतना स्पष्ट देखाय छे. ते प्रमाणे आ वनस्पतिनुं शरीर पण छे कारण के जन्म पामेलु, केतकीनु भाइ पाळक युवा अने वृदयी संत ( युक्त) छे. आ सरखापणाथी जन्मना धर्मवाळ छे बन्नेमां का विशेष भेद नथी, के जेनाथी जाविधर्म पणुं छतां पण मनुष्य विगेरे शरीर सचेतन होय अने बनस्पति शरीर तेवू नहीं. ___ वादीनो प्रश्न-जाति धर्मपणु बाळ, नख, दांत विगेरेमां पण छे अने तेथी तमा लक्षण व्यभिचारवालं पयुं अने लक्षण भव्यभिचारी जोइए नेथी जाति धर्मपणुं जीव लिंग छे ए तपारी कल्पना अयुक्त छे. 18 उत्ता-जनन मात्र सत्य छे. पण मनुष्य शरीरमां प्रसिद्ध एवी बाळ कुमार विगेरे अबस्थापणुं छे तेनो केश विगेरेमा असंभव द . पाटे तमारूं कहे अयुक्त छे. वळी केश अने नख चेतनावालाथी अधिष्ठित शरीरमा उत्पन्न थाय छे, तेथु कहेवाय छे, अने तेज प्रमाणे वधे छे, पण चेतनाबाळाने आधारे रही झाडो विगेरे उगे छे, तेवू तुं पण इच्छतो नथी, कारण के तारा मत प्रमाणे For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy