SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा सूत्रम् ॥१७२॥ ॥१७२॥ ___ आ जिनेश्वरना मतमांज परमार्थथी छे; पण बीजे ते, जीवदयार्नु स्वरूप बतायुं नथी, कारण के जेवी प्रतिज्ञा ले तेवू नि-IP ४. ध अनुष्टान करवाथी निति मागे साधन पदवाळा गणाय, पण बोले तेवू न पाळे, तो शाक्यादि साधु न गणाय तेथी जैन गतने | अनुसरनाराज अनगार (साधु) कहेवाय, ते वतावे छे, के पूर्व कहेला बार्थ प्रमाणे चालनारो तथा घर विनानो उत्कृष्टथी अण| गार कहेवाय छे. शा माटे उत्कृष्टथी ? ते बतावे छे. जे अणगार, नामने योग्य कारणभूत गुणोना समूहने आदरे छे, ते उक्तप्टथी छे. अने 'इति' शब्द मूळमां , ते साधु कहेवाय, आ वासने पूरी करे छे, एटले एम समजवू के. “जीव रक्षा" अणगारनु लक्षण छे. पण बीजु नयी, पण जेओ आ पामार्थ साधक अनमार गुयोने छोडीने शब्दादि (सारा गायन विगेरे) इच्छीने तेमां | प्रवर्ते के, अने वनस्पति जीवोनी अपेक्षा (रक्षा करवी) ने विसरे छे, तेने साधु नयी; आ मधुर शन्दवा बाजींत्रो वनस्पतिनां बने छे. तेथी तेनु दुःख विसारीने पोताने कृत्रिम आनंद लेनारा राग द्वेशरूप विषय विपना नशाथी घेरायला चपल लोचन वाळा (रसिक जीवी) नरकादि चार गतिमा भ्रमण करनारा जीको जाणवा, जेने ते नरक विगेरेयां भ्रमण करघु होय तेज शन्द (मधुर गायन) विगेरेना रसीआ बने छे. आ अर्थने प्रसिदि माटे पूर्व कहेला अने पछीना लक्षणवाळां बीजां अवधारण फळनो निश्चय थवा माटे सूत्र कहे छे. जे गुणे से आवटे, जे आवटे से गुणे ( सू०४०) जे शब्दादि गुण (स) ते आवर्त छे जेमां जीवो परिभ्रमण करे छे. ते संसार पोते आवर्त छे. अहीं मुख्य कारण नेज For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy