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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ९६४ ॥ अभूत शब्द छे, ते अवस्था बतावे छे. योनि अवस्थावाला बीजमां योनिनुं परिणाम न छोडे त्यांसुधी बीजरूपे छे. कारणके, बीजनी वे अवस्था छे, योनि अवस्था अने अपोनि अवस्था, ज्यारे बीजो योनि अवस्थाने न छोडे, एटले एक जीवे बी| जने छोड्युं नथी त्यांसुधी योनित्रा छे, अहीं योनिनो एवो अर्थ ले के तेमां जीवने उत्पत्तिनुं स्थान नाश पाम्युं नथी, तेवी योनिवाळा वीजम जीव आधीने उत्पन्न थाय छे. हवे ते वीजमा पूर्वना बीजनो जीव, अथवा अन्य नवो जीव आवीने उत्पन्न थाय छे, एनो भावार्थ ए छे, के जीवे ज्यारे आयुष्यना क्षयथी बीजनो त्याग कये, त्यारे अने ज्यारे ते बीजनो पृथिवी पाणी विगेरेनो संयोग थयो. त्यारे कोइवखत ते पूर्वनो जीव त्यां आवीने परिणमे छे, कोइवखत बीजो पण आवे छे, अने जे मूळपणे जीत्र परिणमे, तेज प्रथम पत्रपणे पण परिणमे छे, एक जीव मुळ पत्रने करनार छे, अने पहेलु पांदड जे छे ते आ बीजनो 'समूच्छन ' अवस्था छे, ते भ्रू, जळ, काळजी अपेक्षाए कहेवा छे. आ नियमयी वतावेल छे. पण याकीना किशलय विग्रेरे मूळ जब परीणामथो प्रगट थयेलां नथी, एम चतावेलं जाणवु, तेथीज कहे हे के: www.kobatirth.org जे सर्वे कुंपळो उत्पन्न थी बढ़ते अनन्तकाय छे, हवे बीजां साधारणनां लक्षण कहे छे. hi भजमाणस्स, गंठी चूपणघणो भवे । पुढविसरिसभेएणं, अनंतजीवं वियाणाहि ॥ १३९ ॥ कंद, छाल, पत्र पुष्प, फळ विगेरेने भागेला चक्राकार संमछेद (भंग) थाय छे. तथा जेने गांठ, पर्व अथवा भंग मूळ, "वोऽवि किसलओ खलु उग्गममाणो अणन्तओ भणिओ” For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१६४॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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