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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१३८॥ www.kobatirth.org आ अपकायां द्रव्य भावरूप शस्त्र न वापरनाने आ समारंभी वध कारणपणाथी अपरिज्ञात छे. (पाणीना जीवोने हणवाधी कर्मबंध थाय छे ते जाणता नथी) अहिंसा अपकायना जीवोनो शस्त्र समारंभ करतां आ समारंभो कर्म बंधनु कारण छे. ते झपरि| साथी साधु जाणीता थाय छे अने प्रत्याख्यान परिज्ञायी ते समारंभो दूर करे छे. ते प्रत्याख्यान परिज्ञाने विशेषथी ज्ञ परिज्ञापूर्वक बतावे छे. उदकनो आरंभ करवो बंध माटे छे, एवं जाणीने मर्यादामा रहेलो डाम्रो पुरुष पोतानी मेळे उदकने नाश करनार शस्त्र न चलावे, चलावरावे नहि; अने चलावनारने अनुमोदे नहि. जे मुनिने उदकशखना समारंभ वत्रे प्रकारे जाणीता छे, तेज सुनिने मुनि कहे छे ज्ञाता हे जंबू ? में सांभळयुं छे, ते तने कहुं हुं ॥ त्रीजो उद्देशो पूरो थयो . हवे चोथा उद्देशो कहीए छीए, तेनां त्रीजा साथै आ संबन्ध छे त्रीजा उद्देशायां मुनिपणाना स्वीकार माटे अप्काय बताव्यो. डवे मुनित्वना स्वीकार माटे क्रमे आवेला अग्निकायनां उद्देशां बतावे छे. (अग्निना जीवो बताववा चोथो उदेशो कहे के, ) तेनां उपक्रम विगेरे चार अनुयोगद्वार कहेवां, तेवां नाम निष्पन्न निक्षेपमां तेजस उदेशो एवं नाम छे. मां तेज शब्दना निक्षेपा विगेरेद्वार कदेवां अने अहिं पृथ्वीना विकल्प माफक केटलॉक द्वारोमां अतिदेश (जूदापं) तथा विलक्षणपणाथी बीजां द्वारोनुं अप् (पाणी) उद्धार (बाकी रहेला) ए बेने ध्यानमा लड्ने नियुक्तिकार गाया कहे छे. उस्सवि दाराई लाई जाई हवन्ति पुढवीए । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुत्र भोगसत्थे य ॥ १५६ ॥ अमिना पण द्वार विगेरे निक्षेपा पृथ्वीमां बताच्या छे, तेज प्रमाणे छे, पण जे अपवाद छे, ते कहे छे, विधान, परिमाण, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१३८॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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