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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie आचा० सूत्रम् ॥१२७॥ ॥१२७॥ | एटले जे एम कहे छ, के हु' नथी, ते पोते साम्यर्थथी अपकायना जीवोने पण न माने, कारण के आत्मा नी अंदर हाथ विगेरे अवयव युक्त शरीर अधिष्ठाता के छतां तेने उडावे के तो पछी जेनुं चेतना लिंग अव्यक्त के एवा अपकाय जीवोने उडावे ए तो सहेलुंज छे. आ प्रमाणे अनेक दोषो आवता जाणीने बुद्धिमान पुरुषे अपकाय नथी, एवं खो न बोलवू, एवं विचारीने अपकायमां पण जीव छ, एम समजीने अपकायनो आरंभ साधुओए न करवो, पण बौद्ध मत विगेरेना साधुओं तेनाथी उलटा एटले अपकायनी हिंसा करनारा छे, ते बतावे के लजमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहि उदय | कम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ । तत्थ खल भगवता परिणा पवेदिता । इमस्त चेव जोवियस्त परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेडं से सयमेव उदयसत्थं समारभति अण्णेहि चा उदयसत्थं समारंभावेति अण्णे उदयसत्थं समारंभंते समणुजाणति । तं से अहियाए तं से अबोहिए । से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्टाय सोच्चा भगवओ अणगाराणं अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस। कर For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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