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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १२४ ॥ www.kobatirth.org उर्दु गमन थाय ( अमभावे परिणमे ) तेमने छोडीने संपूर्ण अंगगारना क अर्थमा छे. बळी- 'विजहित्ता पूव स जोगं' एटले पूर्वनो संबंध जे माता पिता साथै छे तथा पाछलो संबंध जे ससरा विगेरे साथ छे ते बन्ने संयोग छोडीने श्रद्धा पाळे तेमां जेने आ उपदेश देवाय हे ते शंका अथवा कुभावना छोडीने श्रद्धातुं पालन कर | तेनेज कहेवाय छे, तेथी एम समज के जंबूस्वामीने कहे छे के तमे आयुं संयमनुं रुडु अनुष्ठान करशो एटलुंज नहिं पण वीजा महा सत्ववाळा पुरुषो थड़ गया ते पण पूर्वे आ प्रमाणे करता हता ते बतावे छे. या वीरा महावीहिं ( सू० २० ) परिसद, उपसर्ग, कपाय, तेमनी सेनाना विजगथी वीरपद पामेला अने महान पंथ सम्यक्दर्शन विगेरे रूप मोक्षमार्ग जे जिनेश्वर विगेरे सत्पुरुषो वारंवार वापरेला तेने अनुसरीने वीर्ययाका घनी संयम अनुष्ठान करे छे, तेथी उत्तम पुरुषोथी आ मार्ग उपयोगमा लेवायलो छे, एवं बतावी तेमणे पाडेला मार्गमा विश्वासवाळा शिष्यो संयम अनुष्ठान सुखथीन करशे, उपदेश कर्या पछी कहे छे, के लोक विगेरे छे तेमां तमारी बुद्धि अपकायना जीव विगेरे विषयोमा असंस्कारी होवाथी न पहावे तो पण भगवाननी आज्ञा छे, तेथी मानवं जोइए ते कहे छे, लोगं च आणाए आभसमेच्चा अकुओभयं (सू० २१ ) अलोक शब्दयी चालता मसंगे अपकायनो विषय होवाथी अपकायनेज लेवो ते अपकाय लोकने अने 'व' शब्दथी अन्य For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १२४॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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