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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १२० ॥ www.kobatirth.org सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढधीए । एवं आउसे निज्जुती किचिया एसा ॥१४॥ निक्षेप, वेदना, वध, अने निवृत्ति जेम पृथिवीकायमा वतान्यां तेवी रीते अपकायना उद्देशामां पण निर्युक्ति एटले निश्वयथी अर्थ घटना बतावी छे. एटले एम जाग के अपकायना जीवोनों वध करवायी बंध थाय छे। अने ते समजी बुद्धिमाने अपकायना जीवोने दुःख न दे एवो सर्व विरति धर्म स्वीकारको हवे सूत्र अनुगममां अस्खलित विगेरे गुणयुक्त सूत्र उच्चारण करयुं, ते नीचे प्रमाणे. से बेमि जहा अणगारे उज्जुकडे नियायपडिवण्णे अमायं कुवमाणे वियाहिए (सू०, १८) पूर्व सूत्र साथै आ मूत्रनो एम संबंध के के गया उद्देशामां छेल्ला सूत्रमां पृथिवीकायनो: समारंभ त्यागे ते मुनी एम क हतुं. पण तेटलाबीज संपूर्ण मुनी न थवाय ते बतावे छे, धर्मस्वामी कहे छे के “ में भगवान पासे पू सांभ तेमां आ पण जाणवु." एटले पूर्वना सूत्र साथै आ सूत्रनो संबंध जोडायो. मूळमां 'से' शब्द छे तेनो अर्थ गुजरातीमां 'ते' थाय छे.. एटले पृथिवीकायनो समारंभ त्यागे अने तेनी साथे बीजुं भुं त्यागे तो संपूर्ण अणगार थाय. अथवा केवो अणगार न थाय ते हुं कहुं हुँ, " अणगारा मो चि एगे पत्रयमाणेत्यादि " जेमने घर नथी ते 'अणगार' छे. अहींया यति विगेरे शब्द छोडीने अणगार शब्द लीधो तेनुं कारणं बतावे छे. परतु For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १२० ॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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