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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १९४ ॥ www.kobatirth.org शुद्धोदक ते तळाव, नदी, समुद्र, कुंड, अव विगेरेमां रहे पण ते ओससित्रायतुं जाणयुं, अने रातमा अथवा परोडीए जे ठार पडे छे जेने गुजरातमा झाकल कहे छे. ते अवश्याय (ओस ) छे, अने शियाळाम टंडा पुलना समुहना संपर्कथी जळ बरफीना चोसला जेवं कठण थाय छे ते हिम छे. अने गर्भ महिनामां सांज सवार जे घुमाडा जेवुं पडे छे ते धुमस अथवा महीका कवाय छे अने शरद तथा वर्षाना काळमां लीली वनस्पतिना उपर पाणीनां बिंदु पढे छे, ते जमीनना स्नेहना संपर्कधी उत्पन्न थयेलो हरतनुं कहेवाय छे. आ मुख्य पांच भेद बादर अपकायना छे. शंका- पण सूत्रां बादर अपकायना घणा भेदो बताव्या छे जेमके करा, थंडो उनो खारक्षत्र, कटु, अम्ल, लवण, वरुण, कालोद, उच्कर, क्षीर, घृत, इक्षुरस, विगेरे भेदो बताब्या छे, ते शा माटे ? उत्तर-आ वधा भेद बादर अपकायना छे खरा, पण बधा भेदोनो पांच भेदमांज समावेश थाय छे जेमके करा कठण होवाथी हिममां तेनो समावेश थाय छे अने बाकीनाओनो शुद्धोदकमां समावेश थाय छे, फक्त तेनुं भिन्नपणु स्पर्श, रस, स्थान, वर्ण, विगेरेमांज छे, (जेम के समुद्रनुं पाणी मात्र जुदा जुदा पाणीना पुद्गलो तेमां मळेला होवाथी स्वादमां खारु छे पण ते शुद्धोदकम छे. शंका- जो एवी रीते पांचमांज बानो समावेश तो होय तो पद्मवणा सूत्रमां बीना भेदोनो पाठ केम आप्यो ? उत्तर- श्री बाळ, अने मंद बुद्धिबाळाने सहेलथी समजाय ते माटे भेद पाया छे. प्रश्न- त्यारे अहिं नियुक्तिकारे केम भेद न बताव्या? For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ११४ ॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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