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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १०५ ॥ www.kobatirth.org कहे छे के जैनेतरी पोताने अमे अगार पटले घर तेनाथी रहित एटले अनगार (यति) छीए एम बोले छे. ते शाक्यमत विगेरेना साधुओ जाणवा. एम बतावे छे ते कहे छे के अमेज जंतु रक्षामां तत्पर छीए तथा अमे कषाय अज्ञानरूप अंधकारने दूर कर्या छे. ए ममाणे बोलनारा प्रतिज्ञा मात्र जे अनर्थनुं मूळ ते व्यर्थ बोले छे. जेम कोइ अत्यंत सुचीबोद्र ते चोसठ बार माटीथी स्नान करना अने गायना मदानी शुचीने दूर करीने पाछो कर्म कर ना कहेवाथी चामडां हाडकां मांस, स्नायु विगेरेने पोताना उपयोग माटे तेनो संग्रह करे तेज प्रमाणे तेणे पवित्रतानुं अभिमान धारण कर्या छर्ता शुं त्यायुं ? इज नहि ते प्रमाणे शाक्यमत | विगेरेना साधुओ अनगार वादने वहन करे छे, पण अनगारना गुणोमां जरापण वर्तता नथी अने गृहस्थनी चर्चाने जरा पण उल्लंघता नथी एवं देखा छे एनुं आ सर्वजन प्रत्यक्ष एवं कृत्य पृथिवीकायना जीवोने जुदा जुदा प्रकारना हळ कोदाळी, खनित्र विगेरेथी जीवोने हणे छे. अने पृथिवीकायना समारंभमां पृथिवीकायना शस्त्रोत्र डे पृथिवीकायना जीवोने हणवा साथै तेने आथयीने रहेला बीजा जीवो पाणी वनस्पति, विगेरेने हणे छे. तेनो भावार्थ आ छे के जीव मात्रने बचाववानी प्रतिश करी जीवनु | स्वरुप जाणवानी दरकार करता नथी अने गृहस्थ माफक पृथिवीकायनो समारंभ करीने अनेक प्रकारे पृथिवीना जीवोने तथा | तेने आश्रयी रहेला अनेक जीवांने हणे छे. आ प्रमाणे शाक्य विगेरेनुं पार्थिव जंतु साथै बैरभाव बताची तेमनुं अयतिपर्ण मतावी | हवे सुखोना अभिलाष बड़े कर कराव अनुमोदधुं तथा ते त्रण करण साथे योगनी महत्ति बतावे छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १०५ ॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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