SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्यय [६५ प्रथम अध्ययन चतुर्थोद्देशकः ] भावार्थ-सर्वज्ञ देव अथवा श्रमणजनों से अात्मविकास के लिये आदरणीय ज्ञानादि प्राप्त करके कितने ही प्राणी यह समझ लेते हैं कि यह हिंसा आठ कर्मों के बंधन का कारण रूप है, मोह का कारण है, मरण का कारण है और नरकादि दुर्गति का कारण है । तदपि जो खानपान एवं प्रशंसा तथा विषयों में गृद्ध हैं वे प्राणी भिन्न २ प्रकार के शस्त्रों द्वारा अग्निकाय कर्मसमारंभ से अग्निकाय के जीवों की हिंसा करते हैं और साथ अन्य अनेक त्रस प्राणियों का भी वध करते हैं। से बेमि संति पाणा पुढविणिस्सिया, तणणिस्तिया, पत्तणिस्सिया, कट्टणिस्सिया, गोमयणिस्सिया, कयवरणिस्सिया। संति संपत्तिमा पाणा ग्राहच्च संपयंति य । अगणिं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावति । जे तत्थ संघायमावति ते तत्थ परियाविनंति, जे तत्थ परियाविनंति ते तत्थ उद्दायंति (३६) संस्कृतच्छाया--सोऽहं ब्रवीमि सन्ति प्राणाः पृथियीनिश्रिताः, तृणनिश्रिताः, पत्रनिश्रिताः, काष्ठनिश्रिताः, गोमयानीश्रताः, कचवर निश्रिताः । सन्ति सम्पातिनः प्राणिनः आहत्य संपतन्ति च । अाग्निञ्च खल स्पृष्टाः एके संघातमापद्यन्ते, ये तत्र संघातमापद्यन्ते ते तत्र पर्यापद्यन्ते ये तत्र पर्यापद्यन्ते ते तत्रापद्रावन्ति । शब्दार्थ से बेमि=मैं कहता हूं । संति पाणा प्राणी हैं । पुढविनिस्सिया पृथ्वी के आश्रित । तणनिस्सिया तृण के आश्रित । पत्तणिस्सिया वृक्ष के पत्तों के आश्रित। कट्ठनिस्सिा = लकड़ी के आश्रित । गोमयणिस्सिया-छाणों के आश्रित । कयवरणिस्सिा -कचरे के आश्रित। संति संपातिमा पाणा-अचानक ऊपर आकर गिरने वाले प्राणी भी हैं । पाहच आकर । संपयंति-अन्दर गिरते हैं । अगणिं च खलु पुट्ठा अग्नि में पड़कर । एगे एकेक जीव । संघायं अत्यधिक शरीर संकोचन को। पावजंति प्राप्त होते हैं । जे तत्थ संघायमावज्जंति-जो वहाँ गात्र संकोच करते हैं । ते तत्थ परियाविञ्जन्ति वे वहां मूर्छित होते हैं । जे तत्थ परियाविञ्जन्तिजो वहां मूर्छित होते हैं । ते तत्थ उद्दायंति=चे वहां मरण पाते हैं। भावार्थ हे जम्बू ! मैं कहता हूँ कि जमीन, तृण, पत्र, काष्ठ, गोबर (छाना) और कचरे के आश्रित अनेकों त्रस जीव रहे हैं । ये छोटे २ त्रस जीव और पतंगिये के समान उड़ने वाले संपातिम प्राणी आकर अग्नि का प्रारम्भ करने पर अग्नि में गिर पड़ते हैं । अग्नि में गिरने पर उनके शरीर अत्यन्त संकुच ने लगते हैं । पश्चात् वे मूर्छित होकर मन्यु को प्राप्त करते हैं । इस तरह अग्नि का आरम्भ करने से केवल अग्निकाय की ही हिंसा नहीं होती किन्तु अनेक त्रसादि प्राणियों की भी हिंसा होती है । विवेचन-अग्निकाय की हिंसा-अग्नि को जलाने से और जलती हुई को बुझाने से दोनों तरह की होती है। इसमें अग्नि को प्रज्वलित करने वाले को अधिक हिंसा होती है क्योंकि अग्नि शस्त्र अनेक For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy