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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अष्टम अध्ययन [ ५५७ अशान्ति उत्पन्न हो जाती है । इस मरण का आशय तो यह है कि अन्तिम समय में श्रात्मा पूर्ण समाधि में रहे और निजस्वरूप में मग्न रहे। हर एक व्यक्ति इस अनशन ( इङ्गितमरण ) के योग्य नहीं होता है। जो व्यक्ति सत्यवादी, पराक्रमी, अधीरतारहित और निडर होते हैं वे ही इसका आश्रय लेने के पात्र हो सकते हैं । कायर, अधीर, झूठे और डरपोक व्यक्ति यदि अनशन का सहारा लें तो यह उनका श्रेय नहीं कर सकता क्योंकि ऐसे व्यक्ति इसका यथोचित रूप से अनुष्ठान नहीं कर सकते हैं । यह वीरों का ही अनुष्ठान है । अनेक वीर पुरुषों ने इसका अनुष्ठान किया है। यह हितकारी, सुखकारी, कर्मों का अन्त करने वाला, मोक्ष की सिद्धि करने वाला और दीर्घकाल तक सुख की परम्परा को देने वाला है। -उपसंहार(१) एकत्वभावना जीवन की अनमोल निधि लघुता को जन्म देती है । (२) स्वादजय साधना का मुख्य अंग है। अपघात करना शरीर का दुरुपयोग है। उपयोगपूर्वक मृत्यु का आलिंगन करना हितकारी है। इति षष्ठ उद्देशकः For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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