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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विमोक्ष नाम अष्टम अध्ययन -पञ्चम उद्देशकः(प्रतिज्ञा-पालन ) ___चतुर्थ उद्देशक का वर्णन किया जा चुका है। अब पञ्चम उद्देशक प्रारम्भ होता है । गत उद्देशक में तीन वस्त्र का अभिग्रह करने वाले साधक का कथन किया गया था अब इस उद्देशक में दो वस्त्र रखने वाले साधक का कथन किया जाता है। साधक का उद्देश्य दिन-प्रतिदिन अपने साधनों को घटाने का होता है। साधनों को घटाने से आभ्यन्तर की उपाधि कम होती है और उपाधि की कमी होने से अशान्ति कम होती है इससे साधक का मार्ग अति सरल बनता है। बाह्य साधन जितने अल्प होते हैं उतनी ही अधिक शान्ति की प्राप्ति होती है इसलिए क्रमश: बाह्य साधनों को घटाने का उपदेश देते हुए सूत्रकार फर्माते हैं: जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिए पायतइएहिं तस्स णं नो एवं भवइतइयं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिजाई वत्थाई जाइजा जाव एवं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं-अह पुण एवं जाणिजा-उवाइक्ते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे, अहापरिजुन्नाई वत्थाई परिविजा, अहापरिजुन्नाइं परिझुवित्ता अदुवा संतरूत्तरे, अदुवा श्रोमचेले, अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले लाघवियं आगममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ, जमेयं भगवया पवेइयं तमेव अभि. समिचा सव्वश्रो सव्वत्ताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया। संस्कृतच्छाया-यो भिचाभ्यां वस्त्राभ्यां पर्युषितः पात्रतृतीयाभ्यां तस्य नैवं भवतितृतीयं वस्त्र याचिष्ये, स यथैषगीयानि वस्त्राणि याचेत यावतेवन्तस्य भिक्षोः सामध्यम्-अथ पुनरेवं जानीयात्--अपक्रान्तः खलु हेमन्तो ग्रीष्मः प्रतिपन्नः, यथा परिजीर्णानि वस्त्राणि परिष्ठापयेत्, अथवा सान्तरोत्तरो ऽथवाऽवमचेलः, अथवैकशाटकः अथवाऽचेलो, लाघविकमागमयन् तपस्तस्याभिलमन्वागतम् भवति, यदेतद्भगवता प्रवेदितं तदेवाभिसमेत्य सर्वतः सर्वात्मतया सम्यक्त्वमेव सममि जानीयात् । शब्दार्थ-जे भिक्खु-जो भिक्ष । पायतइएहि पात्रतृतीय । दोहिं वत्थेहि-दो वस्त्रों की मर्यादा करके। परिवुसिए रहा हुआ है- शेष चतुर्थ उद्देशक के प्रथम द्वितीय सूत्रानुसार समझ लेने चाहिए । वहाँ शब्दार्थ लिख दिये हैं । For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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