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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७ महापरिज्ञा अध्ययन = विमोक्ष अध्ययन १ प्रथम उद्देशकः— www.kobatirth.org [ म ] ४६० से ४६१ ४६२ से ५८ ४६२ ५१२ पार्श्वस्थ और अन्यतीर्थिक को अशनादि दान का निषेध, पार्श्वस्थों से दिये जाते हुए अनादि का अस्वीकार, अन्यतीर्थियों के बाद, सुप्रज्ञापितधर्म, दण्डनिषेध | २ द्वितीय उद्देशक: ५१३ कर्मादि श्रहार की अप्रतिज्ञा और अग्रहण, घातादिसहन और धर्माख्यान, अमनोज्ञ को आहारादि देने का निषेध, समनोज्ञ को देने का विधान | ३ तृतीय उद्देशकः ५२३ यौवन में त्यागधर्म का स्वीकार, परीषह भग्नता, परीषहों में कर्त्तव्य, परकृत अनि का सेवन । ४ चतुर्थ उद्देशक: ५३२ तीन वस्त्रधारी का श्राचार, शीत दूर होने पर वखत्याग, वस्त्रत्याग में तप, भगवद्भाषित ज्ञान-क्रियातत्त्व, प्रतिज्ञाभंग की अपेक्षा प्राणत्याग की श्रेयस्करता । ५ पञ्चम उद्देशकः— ५४० दो धारी का आचार, अभ्याहत आहार का निषेध, वैयावृत्य करने और न करने के अभिग्रह | ६ षष्ठ उद्देशक: Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५४८ एक वस्त्रधारी का आचार, एकत्वभावना, स्वादनिग्रह, संलेखना का विचार, संलेखना विधि | ७ सप्तम उद्देशक : अचेलक का आचार, अचेलक का दुःखसहन, आहार ग्रहण की चतुभङ्गी, उद्यतमरण । " ८ अष्टम उद्देशक: १ प्रथम उद्देशक - वीर की चर्या २ द्वितीय उद्देशक वीर की शय्या ५६५ समाधिमरण, कषाय आहार का त्याग, जीवन-मरण में समभाव, संलेखना अनशन, अनाहार-उपसर्गसहन, इङ्गितमरण, पादपोपगमन, सहिष्णुता । ६ उपधानश्रुत ५८४ ३ तृतीय उद्देशक - वीर की सहिष्णुता ४ चतुर्थ उद्देशक - वीरप्रभु की तपश्चर्या १० परिशिष्ट ( अ ) विशिष्ट पाठभेद । (ब) पारिभाषिक शब्दकोष । For Private And Personal ५५८ ५२२ ५३१ ५३६ ५४७ ५५७ ५६४ ५८३ ६२१ ५८४ ५६६ ६०० ६०६ ६०७ ६१२ ६१३ ६२१
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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