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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २६२] [आचाराङ्ग-सूत्रम् द्रव्य भाव शस्त्रों से निवृत्त । पलियंतकरस्स-कर्मों का अन्त करने वाले । पासगस्स-सर्वज्ञ भगवान् महावीर का । दंसणं-उपदेश और अभिप्राय है । भावार्थ-प्रिय जम्बू ! जो त्याग का उपासक है वह अवश्य ही क्रोध, मान, माया और लोभ का वमन करता है । जो कर्मास्रवों का वमन ( त्याग ) करता है वह अपने कर्मों का भेदन करता है। ऐसा द्रव्य-भाव-शस्त्र से सर्वथा परे रहने वाले, कर्मों का अन्त करने वाले सर्वदर्शी सर्वज्ञ भगवान् महावीर का उपदेश और अभिप्राय है। विवेचन-प्रत्येक पदार्थ और प्रत्येक क्रिया का परिणाम अनुभव में आता है। जो जहर खाता है वह मरता है और जो अमृत का सेवन करता है वह अमर बनता है। यह पदार्थों का परिणाम दृष्टिगोचर होता है । बालक वर्णमाला सीखता है और धीरे-धीरे वह पुस्तक पढ़ने लगता है। उसके पुस्तक पढ़ने से यह मालूम होता है उसकी वर्णमाला के सीखने की क्रिया सफल हुई । अगर वह पुस्तक नहीं पढ़ सकता है तो उसका वर्णमाला का ज्ञान यथोचित नहीं है। वर्णमाला सीखने का परिणाम भी प्रतीत होता है । व्यापारी व्यापार करता है तो उसका परिणाम लाभ-हानि स्पष्ट अनुभव में आता है। इसी प्रकार त्याग का परिणाम भी अनुभव में आना चाहिए । त्याग का परिणाम है कषायों का उपशम और उनका त्याग । जितने अंशों में कषायों का शमन है उतने ही अंशों में त्याग समझना चाहिए। कषायों का शमन ही त्याग की सफलता का सूचक है । त्याग की उज्ज्वलता या मलिनता का मापदण्ड कषायों की शान्ति अथवा तरतमता है । जो त्यागी है उसके कषाय अवश्य मिटने चाहिए। पहिले यह कहा जा चुका है कि समभाव पर ही साधुता निर्भर है और समभाव कषायों की निवृत्ति के विना नहीं हो सकता है। अतः त्यागी तो क्रोध, मान, माया और लोभ रूप कषायों का अवश्यमेव त्याग करता है। क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय क्यों कहलाते हैं ? कषाय शब्द का अर्थ क्या है ? यह स्पष्ट कर देने की आवश्यकता है। कम्मं कसं भवो वा कसमाओ सिं जो कसाया ते । कसमाययंति व जो गमयति कस कसायत्ति ॥ आओ व उवादाणं तेण कसाया जो कसस्साया। • चत्तारि बहुवयणो एवं विइयादोऽवि गया॥ भावार्थ-कष का अर्थ है कर्म और भव । जिससे कर्म की और संसार की आय-प्राप्ति हो उसे कषाय कहते हैं। अथवा कर्म या संसार का जिससे आदान (ग्रहण ) हो वह कषाय है अथवा जिसके 'होने पर जीव कर्म या संसार को प्राप्त करें वह कषाय है अथवा आय का अर्थ उपादान कारण है । संसार और कर्म का उपादान कारण होने से वह कषाय कहलाता है । बहुत्व की अपेक्षा इसके चार भेद हैं इसी तरह और भेद भी समझने चाहिए। ___ कषाय की उपर्युक्त व्युत्पत्तियों से यह स्पष्ट हो गया है कि कषाय कर्म और संसार के कारण हैं। कषाय से ही भव-भ्रमण और कर्म बन्ध है । कषायों के बिना कर्मों का बन्ध नहीं होता और कर्म-बन्ध के अभाव में भव-भ्रमण नहीं हो सकता । उमास्वामी ने तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है किः For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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