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तृतीय अध्ययन प्रथम उद्देशक ]
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तात्पर्य यह है कि ज्ञानी और अज्ञानी का भेद पूर्णिमा और अमावस्या, आकाश और पाताल, हिमालय और परमाणु से भी अधिक है। "जो सोता है सो खोता है, जो जागत है सो पावत है" इस कहावत में भी यही भाव गर्भित है । जो द्रव्यनिद्रा से सुप्त होता है वह भी अवसर खो देता है तो जो . मिध्यात्वादि भावनिद्रा से चिरकाल से सुप्त हैं उनका तो क्या कहना ? भावनिद्रा से सुषुप्त प्राणी तीव्र नरकादि दुख को प्राप्त करते हैं और जो विवेक-सम्पन्न होकर सदा जागृत दशा का अनुभव करते हैं वह भागी होते हैं। सुप्तासुप्ताधिकार में टीका में निम्न गाथाएँ संगृहीत हैं:
कल्याण
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जागरह णरा णिचं जागरमा णस्स वड्ढए बुद्धी ।
जो सुइन सो धरणो जो जग्गइ सया धन्नो ॥ १ ॥
अर्थात् हे मनुष्यो ! सदा जागृत रहो। जो जागृत रहता है उसकी बुद्धि बढ़ती है । जो सोता है वह धन्य ( सफल ) नहीं होता और जो जागता है वह सदा धन्य ( सफल ) होता है ॥ १ ॥
सुइ सु तस्स सुसंकिय खलियं भवे पमत्तस्स । जागर माणस सुचं थिरपरिचिश्रमप्पमत्तस्स ॥२॥
अर्थात् — जो सोता है उसका श्रुत (शास्त्रीय बोध ) भी सो जाता है। प्रमादी का ज्ञान भी शङ्कादि के कारण स्खलित हो जाता है। इसके विपरीत जो जागता है उसका श्रुतज्ञान स्थिर और सदा परिचित होता है ॥ २ ॥
नालस्सेण समं सुक्खं, न विज्जा सह निद्दया | न वेरग्गं पमाएं नारंभेण दयालुया ॥ 11
वरए ।
अर्थात्
- आलस्य के साथ सुख, निद्रा के साथ विद्या, प्रमाद के साथ वैराग्य तथा आरम्भ के साथ दयालुता कभी नहीं रह सकती हैं ॥ ३॥
जागरिया धम्मणं श्रहमणिं तु सुत्तया से था ।
विभागणी अहिंसु जिणो जयंतीए ॥ ४ ॥
अर्थात्-जिनेश्वर भगवान् ने वत्स राजा की बहिन जयंती से इस प्रकार कहा था कि धर्मी पुरुष जागते अच्छे और अधार्मिक पुरुष सोते अच्छे । इसका तात्पर्य यह है कि जागते हुए धर्मी पुरुष शुभ क्रियाएँ करेंगे और जागते हुए पापी पुरुष पाप क्रिया करेंगे अतएव धार्मिक जागृत अच्छे और पापी सोते अच्छे हैं || ४ ||
सूत्रकार का आशय यह है कि मुनि-ज्ञानीजन दर्शनावरणीय कर्म के उदय से निद्रा लेते हुए भी 'दर्शनमोहनीय रूप महानिद्रा के चले जाने से सदा जागृत ही हैं और अज्ञानी द्रव्यनिद्रा से जागते रहने पर भी दर्शनमोहनीय रूप महानिद्रा के गाढ अंधकार में सोये रहने से सदा सुषुप्त ही हैं। इसलिए कहा है कि ज्ञानी सदा जागृत हैं और अज्ञानी सदा सुप्त हैं। अज्ञान महादुख है और यही संसार में रहे हुए प्राणियों का घोर हित करने वाला है यह आगे के सूत्र में बताते हैं:
लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं, समयं लोगस्स जाणित्ता, इत्थ सत्यो
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