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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भूमिका अतीत काल में, विश्व के विविध प्रदेशों में और विभिन्न समयों में, जो महान् मनीषी महर्षि हो गये हैं, उन्होंने अपने जीवनव्यवहार से मानव जाति के समक्ष स्पृहणीय आदर्श उपस्थित किये हैं । उनके जीवन की चर्या तत्कालीन प्रजा के लिए कितनी प्रेरणा और कैसी स्फूर्तिदायक रही होगी, यह हमारे लिए कल्पना का ही विषय है किन्तु उनकी चर्या का और उनके उपदेशों का जो विवरण आज हमें उपलब्ध है, वह भी कम प्रभावशाली और प्रेरणाप्रद नहीं है। जिन दूरदृष्ट्रा महापुरुषों ने उनके चरित और उपदेश हम तक पहुँचाए हैं और हमें उनसे परिचय प्राप्त करने योग्य बनाया है, उनका हमारे ऊपर असीम ऋण हैं। हम उन महान् उपदेष्टाओं के साथ उनके संदेशवाहकों के समक्ष भी अपना मस्तक झुकाते हैं । साहित्य के उन निर्माताओं ने यदि उन चरितों और उपदेशों को अक्षर रूप में निबद्ध न किया होता तो हम कितने भाग्यहीन होते ? हम मानव-जाति अनमोल विभूतियों से अपरिचित ही न रह गये होते, afree fafas अन्धकार में भटकते हुए, टटोलने पर भी रास्ता न खोज पाते । श्राज हमारे सामने जीवन के चरम लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जो विस्तृत राजपथ है, उस पथ के निर्माता अगर उपदेष्टा पुरुष हैं, तो उसके प्रदर्शक साहित्यकार मनीषी हैं। लोकोत्तर पुरुषों की पीयूषवर्षिणी वाणी को शाश्वत स्वरूप प्रदान करने वाले साहित्यकार ! हम तुम्हारे प्रति कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धा और भक्ति प्रकट करते हैं। मलयज- सौरभ को जिस प्रकार पवन विश्वव्यापी बनाता है, उसी प्रकार तुमने महापुरुषों के पावन वचनों को जगद्व्यापी बनाया है। आज संसार में सैकड़ों भाषाएँ प्रचलित हैं और उन सब में न्यूनाधिक साहित्य उपलब्ध हैं । उस साहित्य के ग्रन्थों की गणना करना सरल काम नहीं है । किन्तु उस असीम साहित्य का अगर मौलिक विचारधाराओं के आधार पर वर्गीकरण किया जाय तो वह विचारधाराएँ भी अनेक प्रकार की होंगी। किन्तु यहाँ हमें विश्वसाहित्य की विभिन्न विचारधाराओं पर विचार नहीं करना है । वह एक पृथक् और स्वतंत्र विषय हैं, जो काफी विस्तार की अपेक्षा रखता है । अतएव यहाँ विश्वसाहित्य के एक अंगभूत जैन साहित्य के विषय में ही संक्षेप से विचार करना है । जैन साहित्य बहुत व्यापक है । अध्यात्म, धर्म, दर्शन, नीति, राजनीति, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, काव्य, कोष, छंद, अलंकार, अर्थशास्त्र आदि कोई भी विषय ऐसा नहीं जिस पर जैनाचार्यों ने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ न लिखे हों। यही नहीं कि उन्होंने प्रत्येक विषय पर ग्रन्थ लिखे हैं, वरन उन विषयों संबंधी विचार के विकास में भी सराहनीय योग दिया है। उन्होंने प्रत्येक विषय में अपनी मौलिकता की छाप लगाई है । पर साधारण विषयों पर जैनाचार्यों द्वारा लिखे हुए समग्र साहित्य की बात छोड़ दीजिए। उसे हम सामान्य - साहित्य में ही परिगणित कर सकते हैं। सिर्फ जैनदर्शन और जैनधर्म के प्रतिपादक साहित्य को ही जैनसाहित्य मान लें, क्योंकि उसी में जैनपरम्परा के विशिष्ट दृष्टिकोण का तथा जैनाचार-विचार का असाधारण स्वरूप हमें उपलब्ध होता है। ऐसा साहित्य भी विपुल परि माण में मौजूद है | यह साहित्य एक अनूठी विचारधारा का मूल स्रोत है। जैनविचारधारा से मिलतीजुलती अनेक विचारधाराएँ समय-समय पर प्रवाहित हुई हैं, मगर उनमें से कोई भी इतनी प्राचीन नहीं, For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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