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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रुधिर वैकारिकी ८६१ घातक रक्तक्षय ( Pernicious Anaemia ) घातकरक्तक्षय में अस्थिमज्जा की स्वाभाविक रक्तजनक क्रियाशक्ति रक्तोत्पत्तिकर तत्व ( haemopoitic principle ) के अभाव में नष्ट हो जाती है। जिसके कारण रुधिराणुओं की प्रगल्भता ( maturation) अपूर्ण रह जाता है जिसके परिणाम स्वरूप अस्थिमजा अपरिपक्क कोशाओं से भर जाती है। साथ ही ये अपरिपक्क कोशा भी रक्तधारा में अधिक संख्या में प्रविष्ट होने में असमर्थ रहते हैं। ब्वायड का प्राचुर्य में दारिद्रय ( poverty in the midst of plenty ) यहाँ ठीक बैठता है। अन्नपाचनकाल में आमाशय में रक्तोत्पत्तिकर तत्त्व का निर्माण होता है। फिर इसका संग्रह यकृत् में होता है तथा आमाशय एवं वृक्कों में भी यह संग्रहीत रहता है। कैसिल की खोजों से यह निश्चित हो चुका है कि रक्तोत्पत्तिकर तत्व दो वस्तुओं से मिलकर बनता है। एक अन्न की प्रोभूजिन में उपस्थित रहता है जिसे बाह्यकारक (extrinsic factor ) कहते हैं तथा इस बाह्यकारक पर आमाशयिक रस से उद्भूत आभ्यन्तरिककारक ( intrinsic factor ) नामक दूसरे द्रव्य की क्रिया होती है और परिणामस्वरूप रक्तोत्पत्तिकरतत्त्व ( haemopoitic principle ) का. निर्माण हो जाता है। आभ्यन्तर कारक या आमाशयिक कारक (gastric factor ) न तो आमाशयिक रस का अम्ल भाग ही होता है और न पाचि ( pepsin ) अपि तु इन दोनों से पृथक् एक विशिष्ट कारक होता है जिसकी प्रकृति का पूर्ण परिचय अभी तक नहीं हो सका है। इस आभ्यन्तरिक कारक के अभाव के साथ-साथ अनीरोदकता (achlorhydria) या अग्लाभाव पाया जाता है । यह वर्षों रहता है जिसके पश्चात् रक्तक्षय की उत्पत्ति देखी जाती है। इस रोग से पीडित होने वालों के परिवार में पयोलसाभाव (achylia) का इतिहास भी मिल सकता है। जो इस कारक की कमी के कुलजवृत्त का परिचायक है। होता यह है कि पहले रोगी के आमाशय में आमाशयिक अम्ल नष्ट होने लगता है। कुछ समय पश्चात् पाचि (पैप्सीन ) भी कम होने लग जाती है तत्पश्चात् श्लैष्मिक स्राव घटने लगता है तदनन्तर आमाशयिक कारक का अभाव दृष्टिगोचर होता है। इन सब परिवर्तनों का आधार एक शब्द में आमाशयिक श्लेष्मलकला का उत्तरोत्तर अपोषक्षय ( atrophy of the gastric mucosa ) हो सकता है। स्ट्रास और कैसिल का कथन है कि बाह्यकारक प्रकृतितः जीवतिक्ति ख, (विटामिन बी,) है । पर अभीतक इस विषय में निर्णायक विचार नहीं हो पाया है। पर इतना निर्णीत है कि यह विटामिन बी वर्ग का ही पदार्थ है। ___ यह भी न भूलना चाहिए कि बाह्य और आभ्यन्तर दोनों कारकों के द्वारा बने रक्तोत्पत्तिकर तत्त्व होने पर भी यदि आन्त्रिक श्लेष्मलकला से उसका प्रचूषण ठीक ठीक नहीं हो पाता तो भी घातक रक्तक्षयोत्पत्ति देखी जा सकती है। औदरिक रोग For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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