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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir '८७० विकृतिविज्ञान यह मान लिया गया है कि एक स्वस्थ वयस्क में शोणवर्तुलि १००% होती है। उसी अनुपात से शोणवर्तुलि की संख्या अन्यों में निम्न मानी गई है स्वस्थ स्त्री-९० से ९५% । ६ वर्षीय बालक-७० से ८५%। १००% का अर्थ है १४.५ ग्राम शोणवर्तुलि १०० घन सेण्टीमीटर रक्त में उपस्थित है। __ रंगदेशना (Colour index)—व्यक्ति के प्रत्येक रुधिराणु में उपस्थित शोणवर्तुलि की मात्रा का स्वस्थ पुरुष के प्रत्येक रुधिराणु में उपस्थित शोणवर्तुलि की मात्रा के साथ जो अनुपात है वही रंगदेशना कहलाती है। इसके प्राप्त करने के लिए व्यक्ति की शोणवर्तुलि % को, रुधिराणु संख्या प्रति घन मिलीमीटर के प्रथम २ अङ्कों के दुगुने से भाग देना पड़ता है। जैसे यदि व्यक्ति में ८०% शोणवर्तुलि है तथा उसकी रुधिराणु संख्या ४५००००० है तो उसकी रंगदेशना ६२ = या ०.८८ मानी जावेगी। __ रुधिराणु-विकृति होने पर कई रूप शोणवर्तुलि में देखे जाते हैं-साधारणतया जितनी शोणवर्तुलि एक कोशा में आवश्यक है उससे कम दिखाई पड़े या कोशा सामान्यकोशा की अपेक्षा बड़े आकार का होने के कारण उसमें शोणवर्तुलि की मात्रा अधिक मिले। शोणवर्तलि की कमी हरिदुत्कर्ष ( chlorosis) में मिलती है तथा शोणवर्तुलि का आधिक्य घातक रक्तक्षय ( pernicious anaemia) में पाया जा सकता है। शोणवर्तुलि की अत्यधिक कमी के कारण रुधिराणुओं का केन्द्रभाग पूर्णतः वर्णविहीन या श्वेताभ लाल वर्ण का दिखलाई दे सकता है। हरिदुल्कर्ष में इस अवस्था की उत्पत्ति हुआ करती है और इसे अल्पवर्णता (hypochromia ) कहा जाता है। __ यहाँ यह स्मरण करना भी असङ्गत न होगा कि रुधिराणुओं के निर्माण और रंजन में निम्न पदार्थों की आवश्यकता शरीर को पड़ा करती है लोहा-सम्पूर्ण शरीर में ६ ग्राम लोहा है। यह सभी खाद्य पदार्थों द्वारा शरीर को प्राप्त होता है। जैसा कि पहले कहा है ७० से ८० प्रतिशत यह लोहा रक्त में उपस्थित रहता है। ताम्र-शोणवर्तुलि के निर्माण के लिए तथा अयस (लोहे)का उपयोग ठीक ठीक करने के लिए ताम्र की आवश्यकता को आधुनिक जहाँ अब स्वीकार करने लगे हैं वहाँ आयुर्वेदज्ञों ने हजारों वर्ष पूर्व उसकी महत्ता को स्वीकार कर लिया था। जीवतिक्तिग(विटामीन सी) लोहे के पाचन में सहायता करती है यह आधुनिकों ने.बड़े विचार से तय किया है। आयुर्वेदज्ञ अपने लोहे को त्रिफला स्वरस द्वारा ही मारते आये हैं तथा त्रिफला में आमला विटामीन सी का अक्षय भण्डार है । धात्री लोह, त्रिफलामण्डूर आदि योगों में विटामीन सी प्रचुर मात्रा में उपस्थित रहती ही है । यही फोलिक एसिड तथा विटामीन बी को भी हजम करने के लिए आवश्यक मानी गई है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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