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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रुधिर वैकारिकी उरःफलक, पशुकाएँ, करोटि की अस्थियाँ , श्रोणि की अस्थियाँ आदि इसके उत्पत्ति के स्थल होते हैं । बालकों में प्रायशः सभी अस्थियाँ केवल लाल अस्थिमज्जा से ही भरी होने के कारण रुधिराणुओं का निर्माण उनके शरीर की प्रायः सभी अस्थियों में हुआ करता है। सातवें वर्ष में लाल अस्थिमज्जा में पीतअस्थिमज्जा का प्रादुर्भाव होने लगता है जो केवल अण्वीक्षण पर ही स्पष्ट होता है। चौदहवें वर्ष में लाल से पीली मज्जा के निर्माण को स्वयं देखा जा सकता है तथा आगे चलकर बीसवें वर्ष में सब लम्बी हड्डियों में लाल के स्थान पर पीली मज्जा ही शत प्रतिशत दिखाई पड़ती है और रक्त के लाल कणों का निर्माण इनमें पूर्णतः बन्द हो जाता है। यह परिवर्तन सदैव अस्थि के दूरस्थ भाग ( distal end ) में आरम्भ होता है और धीरे धीरे ऊपर की ओर चलता है । साथ ही इन अस्थियों के समीपस्थ भाग (proximal end ) ऊर्वस्थि, प्रगण्डास्थि तथा जङ्घास्थि के ऊर्ध्वशीर्षों पर लाल अस्थिमज्जा केवल बीज रूप में रह जाती है। यही कारण है कि जब आगे चलकर मज्जा की क्रियाशक्ति का परमचय होने लगता है तो वह इनके समीपस्थ भार्गों में ही आरम्भ होता है जो बाद में कहीं दूरस्थ भाग की ओर तक पहुँचता है। एक बात और है कि जिस प्रकार समीपस्थ भाग में लालमज्जा बाद में तथा दूरस्थ भाग को पहले छोड़ देती है वैसे ही उन अस्थियों में जो हृदय की दिशा में अधिक पास होती हैं उनमें लालिमा अधिक काल तक रहती है। यही कारण है कि जब जवास्थि ( tibia ) पूर्णतः पीली मज्जा से भर जाती है उस समय भी ऊर्ध्वस्थि (femur ) में लाल मज्जा पर्याप्त पाई जाती है। यह स्मरण रखना चाहिए कि लाल मज्जा पीली मज्जा की अपेक्षा बहुत अधिक वाहिन्य ( vascular ) होती है। इसी कारण उत्तरजात कर्कट प्रगण्डास्थि ( humerus ) तथा ऊर्वस्थि में जितनी अधिक मात्रा में पाया जा सकता है उतना जङ्घास्थि या अग्रबाहु की अस्थियों में नहीं । आवश्यकता पड़ने पर जब क्रियात्मक (functional ) परमचय होता है तब उन हड्डियों में जिनमें पीली मज्जा भरी होती है एक विस्तृत परिवर्तन हो जाता है। उनके समीपस्थ भागों में पहले तथा दूरस्थ भागों में बाद में लालमज्जा भरने लगती है। यही नहीं आवश्यकतानुसार हड्डी का अस्थीय भाग भी प्रचूषित होकर अस्थिगुहा को और चौड़ा और विस्तृत हो जाता है। यह पीली से लाल मज्जा का परिवर्तन दो अवस्थाओं में बहुधा मिलता है-एक तो जब व्यक्ति अरक्तता (अनीमिया) से पीडित हो जाता है तथा दूसरे जब उसे कोई उपसर्ग (इन्फैक्शन) लग जाता है। उपसर्ग के कारण मृत्यु जिन रोगियों की होती है उनकी लम्बी हड्डियाँ कभी कभी तो पीली के स्थान पर पूर्णतः लाल मज्जा से भरी हुई ही देखी जाती हैं। परन्तु अनीमिया में जो परिवर्तन देखे जाते हैं वे रुधिराणाणुरुहिक (erythroblastic ) होते हैं तथा इन्फैक्शन में श्वेताणुरुहिक (leucoblastic) हुआ करते हैं। : लालमज्जा के अन्दर कोशाओं की पहचान ब्वायड की दृष्टि में एक कठिन कार्य है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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