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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ८४१ समीप बनता है। इसके कारण छोटी-छोटी हड्डियाँ अपनी स्वाभाविक आकृति छोड़ कर गाजर या मूली के समान फूली हुई हो जाती हैं। कास्थिसंकट ( chondro sarcoma)-कास्थ्यर्बुद जब बदलकर संकटार्बुद का रूप धारण करता है तो वह कास्थिसंकट कहलाता है। यह अस्थि के द्वारा या कास्थि के मारात्मक विहास के परिणामस्वरूप बनता है। यह द्रतगति से बढ़ता है और बड़ा कास्थीय पुंज बनता है जो प्रायः श्लिपीय होता है। इसमें कास्थ्यर्बुद का आनील वर्ण और अर्द्धपारभासकता बराबर पाई जाती है। वाहिनीयता इसमें अधिक होती है। यह स्थानिक ऊतियों पर आक्रमण करता है और सिराओं तक पहुँच जाता है जिनमें होकर अन्य प्रदेशों को विशेष कर फुफ्फुसों को विस्थाय पहुँच जाते हैं। औतिकीय दृष्टि से कास्थ्यर्बुद और कास्थिसंकट में बहुत फर्क नहीं होता। फिर भी कास्थिसंकट में वाहिनियों और कोशाओं की कास्थ्यर्बुद की अपेक्षा अधिकता पाई जाती है। अस्थि तथा स्तन इन दो स्थलों में कास्थ्यर्बुद का वर्णन विशेषकर आता है। अस्थि के अन्दर या बाहर बनने वाले कास्थ्यर्बुदों का वर्णन ठीक ठीक पीछे किया जा चुका है कि वे अस्थिशिरीय कास्थि से या अस्थि क्षेत्र में व्याप्त कास्थिभागों में बनते हैं वे बालकों या बड़ों में तब तक बना करते हैं जब तक उनकी वृद्धि, बन्द नहीं हो जाती। वे हार्थों और पैरों की छोटी अस्थियों में बहुतायत से होते हैं। बड़े बड़े एकल कास्थ्यर्बुद अंसफलक, श्रोणि फलक, और्वी अस्थि की ग्रीवा आदि में बनते हैं। इनमें श्लिषीय विहास और कोष्ठोत्पत्ति देखी जा सकती है। इनमें मारात्मक परिवर्तन होने से इनका कास्थिसंकट में भी रूपान्तर देखा जा सकता है। ऐसे परिवर्तन अण्वीक्ष की अपेक्षा शस्त्रकर्म से अधिकतया स्पष्ट हो सकते हैं। स्तन में कास्थ्यर्बुद बन सकता है पर मिलता बहुत कम है। यह स्मरणीय है कि स्वाभाविक कास्थियाँ शरीर में विविध स्थानों और अंगों में मिलती हैं पर वहाँ उनमें कास्थ्यर्बुदोत्पत्ति करने की क्षमता दिखलाई नहीं देती। अस्थियों के अन्दर ही जो कास्थि के क्षेत्र अप्रगल्भ रूप में रह जाते हैं वे अस्थि के रूप में परिवर्तित होना भूल कर कास्थिरूप में ही बढ़ने लगते हैं। यह वृद्धि अमर्यादित और शरीर के स्वाभाविक विकास के विपरीत होने से हानिप्रद होती है और कास्थ्यर्बुद के नाम से पुकारी जाती है। अस्थ्य बुद ( Osteoma) अस्थ्यर्बुद पूर्णतः निर्दोष अर्बुद होते हैं। इनका निर्माण भी कास्थ्यर्बुद की भाँति कंकालीय ऊति द्वारा होता है। ये सहज ( hereditary ) और बहुविध भी होते हैं और तब वे बाल्यकाल में ही दृग्गोचर हो जाते हैं। अस्थ्यर्बुद अस्थि के द्वारा बने होते हैं। या यों कहिए कि जहाँ कहीं किसी भी उति का अस्थीयन हो जाता है वह अस्थ्यर्बुद के नाम से पुकारी जाने लगती है। इसी से नवनिर्मित योजी ऊति के परिणाम का नाम ही अस्थ्यर्बुद है ऐसा भी विद्वानों का कथन है। ७१, ७२ वि० For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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