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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ७८९ तान्तवऊति के प्रणालिकीय अधिच्छद से आवृत प्रवर्द्धनक प्रणालिकीय सुषिरकों में बढ़ते हुए देखे जाते हैं। इसके कारण प्रणालिकाएं विस्फारित होकर फैल जाती हैं। यह तान्तव ऊति भौणिकीय तान्तव ऊति से अधिक मिलती जुलती होती है न कि साधारण संधारकीय तान्तव ऊति से । संधारकीय जति इस कार्य में भाग नहीं लिया करती । स्त्री में स्त्रीमदीय ( oestrogenic) मासिक चक्रकाल में जो परमचय देखा जाता है उसी का विशाल रूप इधर देखने में आता है। यदि इस वृद्धि के छेद को लेकर देखा जावे तो प्रणालियों के सुषिरकों में अधिच्छद से ढंकी तान्तवऊति की द्वीपिकाएँ ( islets ) देखने में आती हैं और उन पर पुनः अधिच्छद का एक स्तर और चढ़ जाता है। जीर्ण तन्वीयन युक्त स्तनपाक ( chronic involutionary mastitis ) में प्रायः बहुत से सतन्तुग्रन्थ्यर्बुद देखने में आते हैं जो छोटे-छोटे और कभी-कभी तो श्यामाकसम होते हैं। कभी-कभी प्रसर ग्रन्थ्यर्बुदाभ परमचय जैसा मिलता है और कोई विशिष्ट अर्बुद नहीं देखने में आता। इस परमचय में तथा स्तनपाक में भेद करना बहुत कठिन पड़ता है। सांकुरकोष्ठीय सतन्तुग्रन्थ्यर्बुद-इस व्याधि को प्रणालिकीय अङ्कराबुद ( Duct papilloma ) भी कहते हैं तथा साङ्कुरसकोष्ठप्रन्थ्य र्बुद ( Papillary cystadenoma ) भी। यह ठीक चूचुक के नीचे बड़ी बड़ी स्तन्यवहाओं में होने वाला रोग है। यह एक छोटा सांकुर अर्बुद या अंकुराबुंद सरीखा दिखता है जो कोष्ठ के एक अवकाश में स्थित रहता है और उसी की प्राचीर से उगता हो। बहुत ही कम यह स्तन के गम्भीर भाग से भी उत्पन्न होता हुआ पाया जाता है। अन्य अंकुराबुंदों की तरह इसे भी तनुप्राचीर वाली रक्तवहाओं द्वारा रक्त पहुंचता है और थोड़े ही आघात के कारण इसमें रक्तस्राव होता हुआ देखा जाता है। अण्वीक्षण करने पर इस अर्बुद की सामान्य रचना एक अंकुराचंद के समान होती है जिसमें तन्तुवाहिन्य प्रवर्द्धनकों पर स्तम्भाकार अधिच्छद चढ़ा होता है । यह अर्बुद शनैः शनैः अपने आकार में वृद्धि करता है। जिससे प्रणालिकाओं का विस्फारण होने लगता है । इसके अंकुरीय प्रवर्द्धनकों के आपस में अन्तर्वयन ( iuterlacing ) के कारण ग्रन्थिसम अवकाश छूट जाते हैं जिसके कारण इसका नाम सकोष्ठग्रन्थ्यर्बुद निकला है। अन्य अन्तः कोष्टीय अंकुराबंदों की भाँति यह भी मारात्मक रूप धारण कर सकता है । साधारणतः यह अर्बुद ४० वर्ष की वय में पुरुषों में तथा बहु-प्रसवाओं में पाया जाता है । ___सतन्तु ग्रन्थ्यर्बुद मारात्मक रूप धारण कर लिया करता है। वे ठोस अर्बुद जिनमें संधार का आधिपत्य होता है संकटाबंदीय रूप धारण करते हैं । साधारणतया ताकार कोशाओं से युक्त संकटार्बुद इधर बनता है जिसकी प्रारम्भिक निर्माणावस्था में अधिच्छदीय ऊति पाई जाती है पर वह आगे चल कर तिरोहित हो जाती है। अंकुरीय प्रकार के अर्बुदों का कर्कट में रूपान्तर होता है और दुष्ट प्रणालिकीय अंकुराबुद बनते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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