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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६४ विकृतिविज्ञान क्या सम्बन्ध है यह अभी स्थिर नहीं किया जा सका। प्रसव के तुरंत बाद या उसके महीनों या वर्षो बाद यह रोग हो सकता है। गर्भ प्रदर्शिका अश्चीम झोंडक कसौटी इसमें भी अस्त्यात्मक रहती है । अर्बुद अपरा की ओर गर्भाशय काया में उत्पन्न होता है । यह अतीव मृदुल, लाल और अत्यधिक रक्तस्रावी पिण्ड होता है जो गर्भाशय की गुहा को भर लेता है तथा जो पेशीय भाग में भी भरमार करता है । उत्तरजात वृद्धियाँ गर्भाशय के निचले भागों तथा योनि प्रदेश में भी मिलती हैं। आगे चलकर अर्बुद गर्भाशय के बाह्य धरातल पर भी देखा जा सकता है । अण्वीक्षण पर देखने से यह ज्ञात होता है कि यह अर्बुद गर्भावस्था की ही एक अतिरेकावस्था है । अपरा के औौण भाग में जरायु के अंकुर ( chorionic villi ) होते हैं इन अंकुरों का महत्त्वपूर्ण भाग पोषरूह ( trophoblast ) कहलाता है । इस पोषरूह का मुख्य कार्यं मातृरक्तस्रोतसों पर आक्रमण करना होता है । पोषरुह में दो प्रकार का अधिच्छद होता है । इनमें भीतर की ओर स्वच्छ चौकोर कोशा होता है जिनमें बड़ी पाण्डुर न्यष्टियाँ होती हैं । इन्हें लेंगहेंस कोशा (langhans' cells) कहते हैं । बाहर की ओर बड़े काले बहुन्यष्टीय कोशापिण्ड होते हैं जिन्हें संकोशकोशा ( syn cytial cells ) कहते हैं । जरायु के अधिच्छदार्बुद में लैंग हैंस के कोशा बहुत अधिक होते हैं तथा दूसरे प्रकार के कोशा कुछ कम होते हैं जो रक्त के सरोवरों में पड़े रहते हैं। इस अर्बुद में लेंग हेंस कोशा बाहर के संकोश ( syneytial ) स्तर में फूट आते हैं जो स्वाभाविक कोशा विन्यास के विरुद्ध होता है । इस अर्बुद में न तो संधार होता है और न रक्तवाहिनियाँ | क्योंकि इसका पोषण उस रक्त से होता है जिसे कि यह आक्रान्त करता है । क्योंकि पोषरुहीय कोशा सदैव और इस अर्बुद का प्रसार रक्तधारा द्वारा होता है स्वभावतया रक्तवाहिनियों पर ही आक्रमण करते हैं । गर्भपात होने के पश्चात् बहुत ही थोड़े काल में फुफ्फुस में इसी अर्बुद के विस्थाय देखने को मिलते हैं । उत्तरजात अर्बुदों से भी रक्त का स्राव उतने ही वेग से होता है जितना कि प्रथमजात में देखा जाता है । योनि की प्राचीरों में उत्तरजात वृद्धि देखी जा सकती है जो वपन द्वारा नहीं होती क्योंकि अर्बुद कोशा वाहिनियों के भीतर पाये जाते हैं । जब लेंगहेंस के कोशाओं के स्थान पर संकोशकोशा ( syncytial cells ) की वृद्धि का अर्बुद मिलता है तो उसे संकोशार्बुद ( syncytioma ) कहते हैं । यह साधारण अर्बुद होता है । इसमें न तो विस्थाय होते हैं और न रक्तधातु आक्रान्त होती है । ( १२ ) स्तनकर्कट (Carcinoma of the Breast) स्तन में होने वाले सम्पूर्ण अर्बुदों में ७५ प्रतिशत कर्कट ही होते हैं । जिसमें इतने अधिक कर्कट की सम्भावना हो सकती है वह गर्भाशय है । For Private and Personal Use Only अन्य अंग यह प्रौढा
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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