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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव ११. अप्रणाल ग्रन्थियों पर व्रणशोथ का परिणाम १२. मूत्र प्रजनन संस्थान पर व्रणशोथ का परिणाम १३. वातनाडीसंस्थान पर व्रणशोथ का परिणाम (१) अस्थि धातु पर व्रणशोथ का परिणाम इस प्रकरण में हम अस्थियों, अस्थिमज्जा तथा कास्थियों पर व्रणशोथ के परिणाम का वर्णन करेंगे। साधारणतः एक अस्थि की रचना में ३ भाग मिलते हैं १. एक बाह्यतान्तव आवरण ( an outer fibrous sheath ) जिसे पर्यस्थ कहते हैं । यह एक वाहिनीयुत ( vascular ) कला है जिसके द्वारा अस्थि के बाह्य भागों का पोषण होता है। पहले ऐसा विचार था कि इस पर्यस्थ भाग के द्वारा ही अस्थि का निर्माण होता है पर वह अब मान्य नहीं हैं क्योंकि यदि केवल पर्यस्थ को खुरच कर किसी शरीर में प्रतिरोपण कर दें तो अस्थि नहीं बनती। पर यदि पर्यस्थ के साथ चाहे बहुत थोड़ा सा अस्थि का भाग भी आने दिया जाय और तब उसे रोपित करें तो नई अस्थि बनने लगती है। इससे ज्ञात हुआ कि अस्थिजनक कोशा पर्यस्थ के नीचे तथा मुख्य अस्थि के बाह्य स्तरों में निवास करते हैं। प्रतिरोपित अस्थि का सम्बन्ध यदि सजीव भाग से थोड़ा बहुत बना रहे तो नव अस्थि निर्माण सरलता से हो जाता है। पर्यस्थ अस्थिदण्ड ( shaft of the bone) पर हलकी हलकी चिपकी होती है पर अस्थिशिर ( epiphysis) पर दृढता से बँधी रहती है। यदि पर्यस्थ को उचेल दिया जावे तो अस्थि के बाह्य भागों की रक्त पूर्ति न होने से अस्थि का नाश होने लगता है। २. दूसरा मुख्य अस्थि का भाग जिसे निबिडास्थि ( compact bone ) कह सकते हैं । यह पहले और तीसरे भागों के बीच में पड़ता है और वास्तविक अस्थि का बोधक यही भाग है। इसका पुनर्जनन करने के लिए रक्त का यथेच्छ आ सकना, निबिडास्थि के बाह्यस्तरों में अस्थिजनक अस्थिरहों ( osteoblasts ) की उपस्थिति तथा आवश्यक खनिज लवणों की प्रचुरता ये ३ बातें अवश्य पूर्ण होनी चाहिए। निबिडास्थि के ही साथ निकुल्या संस्थान (Haversian system ) आता है जिसके अन्तर्गत अस्थिपोषणी वाहिनियाँ आती हैं जो इस भाग को पुष्ट करती हैं। ३. तीसरा मज्जक ( medulla.) जिसके साथ छिद्रिष्ठ अस्थि ( cancellous bone ) का भाग भी रहता है जिसके अन्दर अत्यन्त रक्तपूर्ण मजा ( marrow) निवास करती है। इसका पोषण अस्थिपोषणी वाहिनियाँ तथा मज्जास्थवाहिनी प्रतान (plexus ) के द्वारा होता है। ___ उपरोक्त तीनों भागों में व्रणशोथ हो सकता है और इनके पर्यस्थपाक ( periostitis ). अस्थिपाक (osteitis) तथा अस्थिमज्जापाक (osteomyelitis) ये ३ नाम हैं जिनका विवरण आगे दिया जा रहा है । अस्थि के व्रणशोथ के प्रभवस्थल For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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