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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६२ विकृतिविज्ञान स्तृत अधिच्छद होता है तथा ग्रैविक कानाल में स्तम्भाकारी अधिच्छद का एक स्तर चदा रहता है। इन दो प्रकार के अधिच्छदों के ही आधार पर दो प्रकार के अर्बुद पाये जाते हैं। एक अधिचर्माभ कर्कट जो बहुधा (९६%) देखने में आता है तथा दूसरा ग्रन्थिकर्कट जो बहुत कम (४%) पाया जाता है। यह भी समझना भूल होगी कि योनिभाग से अधिचर्माभ तथा कानाल भाग से ग्रन्थिकर्कट बने। कभी-कभी एक प्रकार का अधिच्छद दूसरे के अन्दर तक प्रविष्ट हो जाता है । उस दशा में भिन्न स्थान से भिन्न प्रकार का कर्कट भी देखने में आता है। ऐसा बहुधा मिलता है कि बाह्यौष्ठ पर कर्कट पहले बने । बाह्यौष्ठ पर अपरदन के कारण विशल्कीय अधिच्छद का स्थान स्तम्भाकारी अधिच्छद ले लेता है फिर वहाँ धीरे-धीरे विशल्कीय अधिच्छद आता जाता है और ग्रन्थिकर्कट के स्थान पर अधिचर्माभ कर्कट बन जाता है। कर्कट कोशा गहराई में उगते चले जाते हैं और उनमें असंख्य विभजनांक देखने में आते हैं। विभिन्नन की मात्रा के अनुसार अधिचर्माभ कर्कट के तीन प्रकार किए गये हैं। एक प्रौढ़ प्रकार जिसमें कोशा बहुत अधिक विभिनित होते हैं। इसमें कदरीकरण और मुकानिर्मिति बहुत होती है। यह प्रकार रेडियोप्रतिरोधी होता है। यह प्रकार २० प्रतिशत तक मिलता है । दूसरा प्रकार प्रतानरूपीय (plexiform) कहलाता है। इसमें कोशा विशल्कीय रूप खो बैठते हैं और उनमें थोड़ा सा अनघटन होने लगता है । यह प्रकार ६० प्रतिशत तक मिलता है। तीसरा प्रकार अनघटित होता है। इसमें कोशाओं में विशल्कीय लक्षण कोई नहीं मिलते, वे पूर्णतः अभिनित होते हैं और पर्याप्त आक्रान्त होते हैं । यह प्रकार २० प्रतिशत तक मिलता है। इस तृतीय प्रकार पर रेडियो किरणों का बहुत अधिक प्रभाव होता हुआ पाया जाता है, यद्यपि वे सबसे अधिक दुष्ट होते हैं । शस्त्रकर्म द्वारा चिकित्सा करने में इन पर सबसे कम प्रभाव पड़ता है। ग्रन्थिकर्कट पर रेडियो रश्मियों का प्रभाव बहुत कम होता है, यद्यपि शस्त्रकर्म द्वारा उसमें पर्याप्त सफलता पाई जा सकती है। ग्रीवा कर्कट का प्रसार अतिवेधन, लसधारा तथा रक्तधारा तीनों द्वारा हो सकता है। अतिवेधन द्वारा कर्कट कोशा परागर्भाशय ( parametrium ) की ओर, बस्ति की दिशा में, मलाशय की ओर अथवा नीचे योनि की ओर जा सकते हैं । गर्भाशय की ओर कर्कट कोशा नहीं जाते चाहे सम्पूर्ण ग्रीवा आक्रान्त हो जावे। यह आश्चर्यजनक है । लसधारा द्वारा अधिश्रोणिकीय ( iliac ), संवाहिनीय ( hypogastric ) तथा त्रिकीय ( sacral ) लसग्रन्थकों में कर्कट कोशा पहुँचते हैं। गर्भाशयग्रीवाकर्कट विस्थाय बहुत देर में बनाया करता है । रक्तधारा द्वारा प्रसार बहुत कम होता है और वह भी तब जब कि रोग बहुत बढ़ गया हो। अधिचर्माभ ककट तो नियमतः रक्तवाहिनियों को आक्रान्त ही नहीं करता ऐसा कहा जाता है। गर्भाशयकाया कर्कट (Cancer of the body of the uterus )—यह बहुत कम होने वाला कर्कट है। गर्भाशय के सम्पूर्ण कर्कटों में १० प्रतिशत यह देखने For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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